परंपराओं को तोड़ने वाली रही जिंदगी भर, पांच रुपये में हुई मेरी शादी: चित्रा मुद्गल 

मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जनपद से सत्तर किलोमीटर दूर निहाली खेड़ा गांव निवासी चित्रा मुद्गल के पिता को चार साल लंदन में  रहना पड़ा तो इनकी चौथी कक्षा तक की पढ़ाई गांव में ही हुई ।

परंपराओं को तोड़ने वाली रही जिंदगी भर, पांच रुपये में हुई मेरी शादी: चित्रा मुद्गल 
चित्रा मुद्गल।

-कमलेश भारतीय 
मैं बचपन से ही वह लड़की रही जो परंपराओं को तोड़ती आई । जो अरहर के घने खेतों के बीच किसी जानवर के छिपे होने के भय और आशंका के बीच अकेली जाती थी और कुछ बड़ी हुई तो साइकिल से । जो अपने  मां बाप के लिए मुसीबत थी । बड़ी हुई । प्रेम हुआ और परिवार के विरोध के बावजूद अवध नारायण है । इससे पहले 'आवां' , 'एक जमीन अपनी' , 'पोस्ट नम्बर 203 नाला सोपारा ' और ' गिलगडू ' उपन्यास समेत 70 पुस्तकें अलग अलग विधाओं में आ चुकी हैं । नये रचनाकारों को प्रोत्साहन देने वाली चित्रा मुद्गल सदैव आशीष देती हैं, मंगल मांगती हैं । कोरोना वारियर भी हैं ।
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जनपद से सत्तर किलोमीटर दूर निहाली खेड़ा गांव निवासी चित्रा मुद्गल के पिता को चार साल लंदन में  रहना पड़ा तो इनकी चौथी कक्षा तक की पढ़ाई गांव में ही हुई । इसके बाद जब वे मुम्बई लौट आईं तो बाकी शिक्षा मुम्बई में ही हुई । पांचवीं कक्षा से लेकर हाई सेकेंडरी पुणे बोर्ड से ।  मुम्बई विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन के कुछ वर्ष बाद एम ए हिंदी किया । वह भी प्रेमी पति के भारी विरोध के बावजूद कि मैं एम ए संस्कृत करूं । पर मैंने दूरवर्ती शिक्षा से एम ए हिंदी किया ।  पति अवध नारायण , डाॅ विनय और राकेश वत्स के आग्रह पर । राकेश वत्स अम्बाला से मुम्बई आते रहते थे और कहते थे कि मेरे सरस्वती काॅलेज से कर लो एम ए हिंदी कर लो पंजाब यूनिवर्सिटी से ।

-किन गतिविधियों में स्कूल काॅलेज में भाग लेती रहीं ?
-कहानी लेखन में प्रथम पुरस्कार जीता स्कूल के ही दिनों में । मैथिलीशरण गुप्त व निराला की किताबें मिलीं पुरस्कार में । 
-अवध नारायण मुद्गल से शादी कब हुई ?
-सत्रह फरवरी , सन् 1965 को । यह एक प्रेम विवाह था । इसलिए परिवार का विरोध सहना पड़ा और मुम्बई के माटुंगा के आर्य समाज मंदिर में पांच रुपये में शादी हुई जिसमें विनोद तिवारी , हरीश तिवारी और उदयन जैसे लेखक शामिल हुए । 
-प्रेम के बारे में क्या कहेंगी ? कैसे घट गया ?
-मोहब्बत का कोई भरोसा नहीं । कब घट जाये और कैसे घट जाये । किस रूप में कहां मिलेगी मोहब्बत कोई नहीं कह सकता । अवध मोहब्बत को समझने वाले थे और संबंध की गरिमा जीवन भर बनाये रखी । 
-लेखन कब से शुरू किया ?
-वैसे तो स्कूल के दिनों से ही कथा लेखन करती आई लेकिन पहली कहानी 'सफेद सेनारा' यानी घास के सफेद फूल नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण में 25 अक्तूबर , 1964 को पुरस्कृत होकर आई और पुरस्कार स्वरूप मिले पच्चीस रुपये ।
-कौन से लेखक पसंद ?
-मुंशी प्रेमचंद । वैसे किसी किसी रचनाकार की कोई कोई किताब भी बहुत पसंद आती है जैसे फणीश्वरनाथ रेणु की 'मैला आचल' । निर्मल वर्मा की रोमांटिक भाषा जो बहुत मखमली भी है । 
-अब तक क्या क्या मुख्य तौर पर लिखा ?
-तमिल के अढ़ाई हजार वर्ष पुराने पंचगव्य को लिखना चाहती थी किशोरों के लिए और चार भाग ही लिख पाई । फिर उपन्यास लिखे और नवीनतम उपन्यास है -'नकटौरा'  जो सामयिक प्रकाशन , दिल्ली से आया है । अभी एक उपन्यास 'एक काली , एक सफेद' लिख रही हूं । इसका दूसरा ड्राफ्ट फाइनल कर रही हूं ।
-क्या फ्रीलांसिंग से परिवार चल सकता है ?
-मैंने तो सारी ज़िंदगी कोई नौकरी नहीं की । इसमें अवध नारायण जी का बड़ा योगदान है कि मैं निश्चित होकर लिखती रही । उन्होंने 27 साल सारिका में ही काम किया-उपसंपादक से संपादक बने सारिका के । 
-कुछ महत्त्वपूर्ण पुरस्कार ?
-सन् 2000 में आवां के लिए पुरस्कृत । सन् 2003 में व्यास सम्मान और सन् 2018 में अकादमी पुरस्कार समेत अनेक सम्मान/पुरस्कार । मैं पहली लेखिका थी जिसे व्यास सम्मान मिला ।
-अब क्या लक्ष्य ?
-लेखन और सामाजिक कार्य ही करती रही हूं और करती रहूंगी । 
हमारी शुभकामनाएं चित्रा मुद्गल को ।