किताबों की संख्या बढाने से कहीं अधिक जरूरी है विमर्शों की ज़मीन को तैयार करना: प्रो. राकेश कुमार

`जिस समय विशेष में हम वर्तमान हैं उस दौर में रची जा रही कविता में साहस का होना जरूरी है| आज के दौर में जब सभी प्रकार के तन्त्र हमें धोखा दे रहे हों तो कवि की ज़िम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है|'

किताबों की संख्या बढाने से कहीं अधिक जरूरी है विमर्शों की ज़मीन को तैयार करना: प्रो. राकेश कुमार

“जिस समय विशेष में हम वर्तमान हैं उस दौर में रची जा रही कविता में साहस का होना जरूरी है| आज के दौर में जब सभी प्रकार के तन्त्र हमें धोखा दे रहे हों तो कवि की ज़िम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है| यह ऐसा समय है जब समय के रथ को घोड़े नहीं खींच रहे हैं लकड़बग्घे खींच रहे हैं| जब रथ लकड्बग्घो के हाथ में हो तो कवि की भूमिका को आप समझ सकते हैं” यह कहना था पंजाब के विशेष कवि एवं आलोचक प्रो. राकेश कुमार का| 

बतौर मुख्य अतिथि बोलते हुए उन्होंने यह भी कहा कि “कवि न सिर्फ और अपने वर्तमान को देखता अपितु उसे अभिव्यक्त करके जन-जागरूकता भी लाता है| इस संग्रह में हमारे समय के अक्स को गंभीरता से चित्रित किया गया है| भले ही कवि देर से अपना संग्रह लेकर आया है लेकिन कुमार विकल के बाद पंजाब की धरती पर ऐसी कविताएँ अब जाकर पढ़ने को मिल रही हैं| सग्रह एक ही हो लेकिन ज़िम्मेदार और महत्त्वपूर्ण मुद्दों को उठाने वाली हो| किताबों की संख्या बढाने से कहीं अधिक जरूरी है विमर्शों की ज़मीन को तैयार करना|”

इसके पहले विषय प्रवर्तन करते हुए युवा कवि एवं आलोचक अनिल पाण्डेय ने कहा कि “जब कवियों की बाढ़ आ गयी हो और कविता से छुटकारा पाने के लिए सभी तत्पर दिखाई दे रहे हों तो ऐसे समय में बलविंदर सिंह अत्री जैसे कवि का आना और उनकी कविताओं पर बात करना जरूरी हो जाता है| यह वह कवि हैं जो पंजाब घुसपैठिये द्वारा उपेक्षित किये जाते रहे हैं| अपने समय और समकाल को ठीक तरीके से देखने वाले अत्री की कविताओं पर विचार करते हुए उनमें निहित सम्भावनाओं और बुनावटों पर भी विमर्श किया जाए|”

अमृतसर से आलोचक संजय चौहान ने अपने वक्तव्य में कहा कि “अत्री की कविताएँ अपने समय के समकाल को रचती ही नहीं पाठकों को सचेत भी करती हैं| समकालीन कवियों की भीड़ में इनका अपना तरीका और मुहावरा है| सत्ता, लोकतंत्र, राजा, प्रजा जैसे भावों के साथ जन जीवन के अन्यानेक प्रश्न बड़ी गंभीरता से मुखरित हुए हैं|” यह कहते हुए उन्होंने ऐसे कवियों पर लगातार चर्चा-परिचर्चा पर बल दिया| 

कला और साहित्य को समर्पित संस्था ‘सरमाया’ की ओर से भारतीय सूचना सेवा के पूर्व अधिकारी बलविंदर सिंह अत्री के काव्य संग्रह ‘लकड़बग्घा हंसता है जब’ पर खन्ना में विचार गोष्ठी करवाई गई। यह संग्रह बिम्ब-प्रतिबिम्ब प्रकाशन फगवाड़ा, पंजाब से प्रकाशित है| युवा आलोचक कमल पुरी, रमण शर्मा ने अपने अभिमत में इस संग्रह के विभिन्न पक्षों को स्पष्ट किया| रमण शर्मा की दृष्टि में यह संग्रह आज के समय के यथार्थ को लाने में सक्षम है| वह मानते हैं कि अत्री ने प्रतीकों और बिम्बों का व्यावहारिक प्रयोग करते हुए कविता के शिल्प पक्ष पर भी जरूरी काम किया है| लगभग विद्वानों का मत था कि अत्री की कविताओं में यथार्थ से सामना करने की हिम्मत है। इसमें वर्तमान स्थिति का खूबसूरती से वर्णन किया गया है। भले ही अत्री का यह पहला संग्रह है पर पिछले चार दशक से वह अपने समकाली कवि शुभदर्शन और राकेश प्रेम की तरह सदा कविता के क्षेत्र चर्चा में रहे हैं। उनकी स्पष्टवादिता और बेख़ौफ़ कलम अत्री को एक अलग पहचान देती है।

प्रमुख चिंतक एवं साहित्यकार राजेन्द्र टोकी ने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि ‘यह समय वाकई कविता पर ठहर कर विचार करने का समय है| कविता को व्याख्या से बचाने के साथ-साथ उसमें विचार का उभर कर आना बहुत जरूरी है| हमें ख़ुशी है कि बलविंदर सिंह अत्री उसमें सफल हुए हैं|” उन्होंने यह भी कहा कि सरमाया द्वारा समय-समय पर ऐसे विचार-गोष्ठी का आयोजन होता रहा है और आगे भी जारी रहेगा| हमारी कोशिश है कि परिवेश की रचनात्मक सक्रियता बनी रहे| 

कार्यक्रम के अंत में त्रिभाषीय कविता-सम्मेलन का आयोजन भी किया गया जिसमें सभी कवियों ने अपने-अपने कविताओं का पाठ किया| डॉ. बलवेन्द्र सिंह ने ‘उम्मीद की हथेलियाँ’ कविता का पाठ किया जिसे श्रोताओं ने खूब पसंद किया| इस कविता का मूल स्वर कवि एवं कविता का साहस ही था| खन्ना जैसे शहर में जिस तरह से युवाओं को रचनात्मक संघर्ष के लिए प्रेरित किया जा रहा है और सिखाया जा रहा है उन्हें यह निश्चित ही अन्य प्रदेश और अंचल के लिए भी अनुकरणीय है| साहित्य के प्रति घटती रुचि को बढ़ाने में ‘सरमाया’ के प्रयास को जरूर याद किया जाएगा| 

इस विचार चर्चा में लुधियाना से प्रोफेसर राकेश कुमार, अमृतसर से डॉ संजय चौहान, जालंधर से डॉ बलवेंद्र सिंह, रमन शर्मा फगवाड़ा से अनिल कुमार पाण्डेय और खन्ना से कमल पुरी, राजीव विद्रोही, परम आदि शामिल हुए। कार्यक्रम का सफल संचालन युवा कवि और आलोचक परमजीत सिंह ने किया|