समाचार विश्लेषण/सियालकोट से दिल्ली और दिल्ली से देश विदेश तक एमडीएच 

समाचार विश्लेषण/सियालकोट से दिल्ली और दिल्ली से देश विदेश तक एमडीएच 
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 

एमडीएच से कौन वाकिफ नहीं ? सभी गृहणियों की पहली पसंद । और इसके सीईओ धर्मपाल गुलाटी 97 वर्ष की जिंदगी के सफर के बाद रवाना हो गये दुनिया से । बड़ा प्रेरणादायी सफर । कहां सियालकोट में चलाते थे एमडीएच यानी महाशियां दी हट्टी और फिर विभाजन ने करोडों लोगों की तरह धर्मपाल गुलाटी के परिवार को भी दिल्ली लाकर छोड़ दिया ठोकरें खाने के लिए । क्या करें ? कोई काम नहीं सूझा तो तांगा ही चलाया । पर जो काम आता नहीं , उसमें किसी को सफलता नहीं मिल सकती और गुलाटी को भी नहीं मिली । आखिर मसाले बनाने का पैतृक पेशा ही अपनाया । पूरा परिवार मसाले कूटता  और फिर काम ऐसा चल निकला कि एमडीएच एक ऐसा ब्रांड बन गया मसालों का कि दिल्ली से लेकर देश विदेश तक धूम मच गयी । 
इसके बावजूद अपने ब्रांड का विज्ञापन करने खुद ही कैमरे के सामने आते । इसकी वजह वे बताते कि अपने मसालों के बारे मे जितनी अच्छी जानकारी मैं दे सकता हूं ,कोई  दूसरा कैसे देगा ? आखिर तक लाल पगड़ी बांध कर और हाथ ऊपर कर आशीर्वाद देते धर्मपाल गुलाटी ही विज्ञापनों में नज़र आते रहे   कोई मसाले वाले अंकल कहता तो कोई मसालों के बादशाह । 

धर्भपाल गुलाटी के जीवन से बहुत बड़ा सबक भी नयी पीढ़ी ले सकती है   कोई भी काम छोटा नहीं । हर काम पूरे समर्पण से किया जाये तो सफलता मिलती है । अवश्य मिलती है । ऐसी सफलता कि प्रतिमाह बीस करोड़ रुपये की सेलरी और उसमें से नब्बे प्रतिशत सामाजिक कामों पर खर्च कर देते । स्कूल और अस्पताल खुलवाये । स्कूल इसलिए कि खुद पांचवीं तक ही पढ़ पाए थे । अब पढ़ने वाले बच्चे पढ़ाई से वंचित न रह जायें । दो चर साल पहले इनकी जीवनी भी आई थी और मीडिया में इंटरव्यूज भी आए थे । इस उम्र में भी अठारह अठारह घंटे काम और फैक्ट्री विजिट हररोज । जवाहरलाल नेहरु ने अंग्रेजी कविता की पंक्तियां अपने सामने लिख कर रखी थीं कि :
बुड्स आर लवली डार्क एड डीप 
बट आई हैव प्रोमिजिज टू कीप 
एंड माइल्ज टू गो 
विफोर आई स्लीप ,,,,
माइल्ज टू गो ,,,विफोर आई स्लीप

हर सफल व्यक्ति की यही कहानी । मीलों चलना है । परिश्रम करना है और करते जाना है । अपने लिए नहीं समाज के लिए । 
हमारे जिंदल उद्योग के बाबू जी ओमप्रकाश जिंदल को कौन नहीं जानता ? कोलकाता गये थे बिजनेस करने । धर्मशाला में खाना खाने लगे तो प्लेट पर लिखा पढ़ा कि मेड इन इंग्लैंड । अरे । मेड इन इंडिया क्यों नहीं ? वापस लौटे हिसार । पहली फैक्ट्री बाल्टी बनाने की लगाई और खुद अपने हाथों लोहा कूटा । बस आयरन इंडस्ट्री के बादशाह हो गये । कहां तक नहीं इनका नाम ? कितनी करोड़ों की विरासत सौंप गये । जिंदल इंडस्ट्रीज से जिंदल स्टेनलेस तक । ब्लेड से लेकर स्टील तक और सिक्के तक बना रहे है हिसार में । अस्पताल और स्कूल खुलवाये हिसार में । बाबू जी दा नां चलदै । ।
नयी पीढ़ी को इन कम पढ़े लिखे लोगों से जिंदगी का संघर्ष सीखना चाहिए और फिर वे कह सकते है कि 
कुछ भी नहीं है मुश्किल 
अगर ठान लीजिए ,,,,