लघुकथा/मजदूर दिवस 

लघुकथा/मजदूर दिवस 
कमलेश भारतीय।

-कल क्या खास दिन था ? बताना मुझे जरा ?
मैंने बर्तन मांज रही कामवाली बाई से पूछा ।
-न बाबू जी । नईं पता ।
 काम करने वाली बाई ने यह जवाब दिया तो मैं चौंका -अरे । इतना तो पता होना चाहिए न कि तुम्हारा दिन कौन सा है ?
-मेरा दिन ? बाबू जी । कोई जानकारी नहीं मुझे ।
-अरे । सारी दुनिया में मनाया जाता है ।
-काहे के लिए ?
-आप लोगों के हकों के लिए लड़े थे लोग ।
-कैसे ?
-न काम के घंटे और न कोई छुट्टी । बस । जानवरों की तरह पेले जाओ ।
-ऐसे ? 
-हां । कितना खून बहाने के बाद तुम्हें छुट्टी का हक मिला और काम के घंटे तय हुए ।
-अब मैं याद रखूंगी बाबू जी । यह तो बहुत खूबसूरत दिन है हमारे लिए करवा चौथ से भी बड़ा। 
ऐसा कहते उसकी आंखों में जो चमक आई , मैं बस देखता ही रह गया ।
-कमलेश भारतीय