सोशल मीडिया पर रुतबा कायम रखना आसान नहीं

देश ही क्या, दुनिया भर के बच्चे, युवा और वयस्क सोशल मीडिया की गिरफ्त में हैं। इस जाल में जो एक बार फंस गया वो निकल नहीं पाता, उल्टे उलझता ही चला जाता है।

सोशल मीडिया पर रुतबा कायम रखना आसान नहीं

देश ही क्या, दुनिया भर के बच्चे, युवा और वयस्क सोशल मीडिया की गिरफ्त में हैं। इस जाल में जो एक बार फंस गया वो निकल नहीं पाता, उल्टे उलझता ही चला जाता है। सोशल मीडिया को बनाया ही इस तरह से गया है कि इनकी लत पड़ जाती है। यही कारण है कि सोशल मीडिया कंपनियों के मालिक अपने बच्चों को अपनी ही सोशल साइट्स से दूर रखते हैं। उन्हें पता है कि यह अफीम की गोली है, एक बार लत लग गई तो छूटने वाली नहीं। सोशल साइट्स पर फॉलोअर्स, फ्रेंड्स, लाइक, कमेंट का ऐसा खेल चलता है कि हर कोई चक्कर खाता है। पिछले दिनों ट्विटर पर अपने फॉलोअर्स घटने की शिकायत को लेकर देश की एक ऐतिहासिक राजनीतिक पार्टी के सुपुत्र ने कंपनी के मैनेजमेंट को चिट्‌ठी लिख मारी कि सरकारी दबाव में उसके फॉलोवर घटाए जा रहे हैं। कंपनी ने सफाई में कह दिया कि संदिग्ध हरकतों को रोकने के लिए उनके सिस्टम में स्वचालित फिल्टर लगे हैं, जो अपने आप एक्शन लेते हैं, राजनीति से इसका कोई लेना देना नहीं। इससे पहले, एक बड़े अभिनेता ने ट्वीट किया था कि रातोंरात उनके लाखों फॉलोवर भाग गए। तब उन्हें बताया गया कि फेक अकाउंट और आटोमैटिक अकाउंट यानी बॉटस को हटाए जाने के कारण बहुत लोगों के फॉलोअर घटे हैं, इसलिए चिंता न करें।
   
ज्यादातर सेलेब्रिटी और बड़े नेताओं ने लाखों-करोड़ों फर्जी फॉलोअर खरीद कर अपने ट्विटर और इंस्टाग्राम को सुपर पॉवरफुल बना लिया, हालांकि ट्विटर पर फॉलोअर खरीदना अब आसान नहीं रहा। लेकिन इंस्टाग्राम, यूट्यूब और फेसबुक पेज पर आप आज भी जितने चाहे फॉलोअर खरीद कर खुद को हाथी जैसा दिखा सकते हैं। इस खेल में जितना पैसा लगाओ उतने बड़े डायनासॉर बन जाओ। लेकिन जो मजा ऑर्गेनिक ग्रोथ में है, वो खरीदे हुए फॉलोअर्स में कहां? यानी आपके कंटेंट में इतना दम होना चाहिए कि लोग खुद ब खुद आपको फॉलो करें। कंटेंट के खेल में माहिर खिलाड़ियों को इंफ्लुएंसर कहा जाता है। इनफ्लुएंसर मार्केटिंग फैक्ट्री के अनुसार, विश्व में करीब 5 करोड़ ऑनलाइन क्रिएटर हैं। ऑनलाइन क्रिएटर्स में बच्चे-बड़े सभी बड़ी संख्या में मौजूद हैं। वर्ष 2021 में क्रिएटर बाजार की वैल्यू 7.44 लाख करोड़ से अधिक थी। क्रिएटर्स की यह फौज खास कर पिछले दस वर्षों में अस्तित्व में आयी है। साल 2021 में ट्विच की शुरुआत हुई तभी क्रिएटर इकोनॉमी की नींव पड़ी। ऑनली फैन्स, ट्विच, पैट्रिऑन और सबस्टेक जैसे प्लेटफार्म क्रिएटर्स को सब्सक्रिप्शन मॉडल से कमाई का मौका देते हैं, साथ ही उनसे कमाई में से 10 से 50 प्रतिशत तक कमीशन लेते हैं। 
 
इस बीच, फेसबुक अपने 10 लाख एक्टिव यूजर घटने से परेशान है। यह भनक लगते ही अमेरिकी शेयर मार्केट में फेसबुक के शेयर 25 प्रतिशत नीचे गिर गए। फेसबुक ने अपनी कॉर्पोरेट पहचान बदलकर मेटा कर ली है। इसके प्रोडक्ट– फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप का नाम वही है, लेकिन पेरेंट कंपनी को अब मेटा नाम से जाना जाता है। फेसबुक पिछले काफी समय से दुनिया भर में बदनामी झेल रही है। इस पर कभी यूजर्स की प्राइवेसी को दांव पर लगाने का आरोप लगा, तो कभी फेक न्यूज फैलाने का। बदनामी के इस भंवर जाल से निकलने के लिए कंपनी ने नाम बदलने का दांव चला, लेकिन यूजर्स को बांधे रखना भला किसके बस में है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व कॉलमिस्ट हैं)