महीप ने बनाई चाय, दी रॉयल्टी

महीप ने बनाई चाय, दी रॉयल्टी
डॉ. महीप सिंह।

-*कमलेश भारतीय
बात 1982 की है। तब डॉ. महीप सिंह ने अभिव्यंजना प्रकाशन शुरू किया था। मुझे इसकी जानकारी लेखिका राजी सेठ ने दी और कथा-संग्रह तैयार करके डॉ. महीप सिंह को भिजवाने का संदेश दिया। मैंने अपना पहला कथा संग्रह ‘महक के ऊपर’ शीर्षक से तैयार कर उन्हें भिजवा दिया।
लगभग तीन-चार माह बाद मुझे डॉ. महीप सिंह ने सूचना दी कि संग्रह प्रकाशित हो गया है। संग्रह की कुछ प्रतियां लेने मैं दिल्ली के पंजाबी बाग में उनके एच-108 आवास पर पहुंचा। जब मैं पहुंचा और डॉ. महीप सिंह को परिचय दिया तब उन्होंने गर्मजोशी से मेरा स्वागत् किया। उन्होंने पहले पानी का गिलास थमाया, फिर कहने लगे- चलो, मैं ही आपके लिए चाय बनाता हूं। इतना कह कर वे किचन में गए और दो कप चाय बनाकर ले आए। इसी बीच ‘महक के ऊपर’ की तीन प्रतियां सौंपते हुए कहा- कायदे से लेखक को दस प्रतियां देते हैं पर इस समय घर में तीन ही मौजूद हैं। शेष प्रतियां भिजवा देंगे।
डॉ. महीप सिंह के संपादन में डायमंड बुक्स हर वर्ष की श्रेष्ठ कहानियां प्रकाशित कर रहा था। मैंने उनसे सवाल किया कि इतनी कथा पत्रिकाओं द्वारा प्रकाशित कहानियों में से श्रेष्ठ कहानियों का चयन वे कैसे करते हैं? उन्होंने बड़ी ईमानदारी व सरलता से स्वीकार किया कि वर्ष भर में प्रकाशित सभी पत्रिकाओं की कहानियां पढ़ना अकेले एक आदमी के बस का काम नहीं। इसीलिए वे स्वयं तो कहानियां पढ़ते ही हैं लेकिन अपनी मित्र-मंडली व अन्य लेखकों से पूछते रहते हैं इस माह कौन-कौन सी कहानियां उनकी नज़र में अच्छी हैं। बस, उन कहानियों को एकत्रित कर पढ़ते हैं और उनमें से हर माह की एक श्रेष्ठ कहानी का चयन कर फाइल में लगा देते हैं। वर्ष के अंत में बारह कहानियों की फाइल डायमंड बुक्स को सौंप देते हैं । उनके इस श्रेष्ठ कहानियां संकलन में मेरी कहानी एक संवाददाता की डायरी का चुनाव और प्रकशन भी हुआ । मेरी उनसे अंतिम मुलाकात हिसार में डॉ. शमीम शर्मा के आवास पर हुई। हमने एक साथ डॉ. शमीम शर्मा की पुस्तकों का विमोचन किया, कहूं कि मुझे उनके साथ विमोचन करने का सुखद अवसर मिला। वे गुरुग़्राम रहने लगे थे और बताया कि अभिव्यंजना प्रकाशन बंद कर दिया था। बस, संचेतना पत्रिका निकालते हैं। कहानी व संचेतन कहानी व कहानी आंदोलनों पर उनका मानना था कि इस तरह नए विचार, नए कथाकार सामने आते हैं। नई चर्चा होती है। डॉ. महीप सिंह नहीं रहे। लंबे कद और संचेतना प्रकाशन की लंबी पारी खेलने वाले डॉ. महीप सिंह को स्मरण कर रहा हूं और अपने पहले कथा-संग्रह के प्रकाशक के हाथों मिली चाय की प्याली की गर्माहट व खुशबू मेरे चारों और फैली है। काश , फिर कोई प्रकाशन वर्ष की श्रेष्ठ कहानियां संकलन का प्रकाशन शुरू करे । 
(यह संस्मरण मेरी यादों की धरोहर पुस्तक के द्वितीय संस्करण में जोड़ा गया है।) 

*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।