समाचार विश्लेषण/हिंदी न आने के चलते तीन तीन बार खो दिए प्रधानमंत्री बनने के अवसर 

समाचार विश्लेषण/हिंदी न आने के चलते तीन तीन बार खो दिए प्रधानमंत्री बनने के अवसर 
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
हमारे भारत रत्न और देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी नहीं रहे । पिछले कुछ दिनों से वे आर्मी हस्पताल में कोरोना पाॅजिटिव पाए जाने के बाद से दाखिल थे लेकिन वे इसे हराने में सफल नहीं हुए और अंततः कल हमसे विदा हो गये । कांग्रेस के पश्चिमी बंगाल से कद्दावर नेता और आजकल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के गुरु माने जाने वाले प्रणब दा ने तीन तीन बार इसलिए प्रधानमंत्री बनने का अवसर खो दिया क्योंकि उनके अनुसार वे हिंदी प्रदेश से नहीं आते थे । उन्हें मलाल था इस बात का । यदि हिंदी धारा प्रवाह जानते तो शायद पहली पसंद होते पर ऐसा नहीं हुआ । उन्हें राष्ट्रपति बन कर संतोष करना पड़ा । पहली बार वे प्रधानमंत्री बनने से चूके श्रीमती इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या के बाद । तब राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने राजीव गांधी को विदेश से बुलाकर तुरत फुरत प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी थी और अपना ऋण उतार दिया था गांधी परिवार के प्रति । हालांकि बाद में राजीव गांधी और ज्ञानी जैल सिंह में रिश्ते उतने मधुर नहीं रहे थे । चिट्ठियों से बात होने लगी जो सबने पढ़ीं । बात खुल कर सामने आ गयी थी । यह अलग प्रसंग है । 
दूसरी बार प्रणब दा फिर चूके जब राजीव गांधी की हत्या हुई और तब बाजी मार ले गये पी वी नरसिम्हा राव । तीसरी बार जब खुद सोनिया गाँधी के प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं बन गयी थीं लेकिन मुलायम सिंह यादव , सुषमा स्वराज ने जोरदार विरोध किया तो वे पीछे हट गयीं और मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बना दिया । इनके बारे में मंच कवि विभिन्न समारोहों में मजाक में कहते थे कि सरकार चल गयी तो सोनिया की और फेल रही तो सरदार की । अब भी अंतरिम अध्यक्ष बनाने के बाद यही बात चर्चा में आई कि मनमोहन सिंह जैसा कोई अध्यक्ष बारह से ढूंढ रहा है गांधी परिवार । खैर । बात हिंदी और प्रणब दा की । हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है । वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गुजरात से हैं लेकिन यह तो निर्विवाद है कि वे अच्छे वक्ता हैं हिंदी में । ऐसे ही नरसिम्हा राव भी अच्छी हिंदी बोलते थे । संभवतः यह बात प्रणब दा ने हास्य में कही हो । अपने प्रधानमंत्री न बन पाने के लिए कोई बड़ा कारण न बताने के लिए । वैसे राजीव गांधी से उनके रिश्ते अच्छे नहीं रहे । बड़ा कारण तो यह रहा प्रधानमंत्री न बनने के पीछे । 
हिंदी दिवस आने वाला है चौदह सितम्बर को । यह बात महत्त्वपूर्ण हो सकती हो कि यदि आप इस देश के किसी भी बड़े पद पर पहुंचने का सपना देखते हो तो हिंदी जरूर आनी चाहिए । इसके बिना सपना अधूरा रह सकता है । एक रोचक बात और भी है कि एक बार प्रणब दा ने अपनी बहन को कहा कि मेरा दिल कहता है कि मैं राष्ट्रपति को ढोने वाले घोड़ों में से एक घोड़ा ही बन जाऊं । इस पर बड़ी बहन ने कहा -पोल्टू घोड़ा क्यों ? राष्ट्रपति क्यों नहीं ? बड़ी बहन के मुख से अचानक निकले आशीर्वाद से वे राष्ट्रपति बने । बेटी शर्मिष्ठा के कहने व मनुहार करने के बावजूद वे नागपुर में आर एस एस के मुख्यालय गये । यह वही जाने कि क्या सोचा लेकिन शायद यह गांधी परिवार को वह प्रधानमंत्री न बनाने का जवाब था । खैर । हम अपने भारत रत्न पूर्व राष्ट्रपति प्रणब दा को नमन् करते हैं ।