ग़ज़ल / अश्विनी जेतली

ग़ज़ल / अश्विनी जेतली
अश्विनी जेतली।

है मेरी इलतिजा मुझ पर तू ये उपकार कर देना
मुहब्बत से मेरी तुम ज़िन्दगी सरशार कर देना

चहक कर मिलना जब भी मिलो इस बेकस परिन्दे को
दिल के उजड़े घरौंदे को गुल-ए-गुलज़ार कर देना

किसी भी मोड़ पर, गर कहीं मिल गए हम तुम
हमें पहचानने से मत कहीं इन्कार कर देना

सच्चाई के लिए मैदान में डट कर खड़े होना
ज़रुरत पड़ने पर तुम कलम को तलवार कर देना

तुम्हारे हक पे डाका डाले कोई सहन मत करना
तुम्हें हक्क है कि उसकी ज़िन्दगी दुश्वार कर देना

पिरो देना हर अश'आर को आशा की माला में
ग़ज़ल भी इस तरह कहना कि इक शाहकार कर देना