ग़ज़ल / अश्विनी जेतली 

ग़ज़ल / अश्विनी जेतली 
अश्विनी जेतली।

ग़म मिरे साथ जब भी चलते हैं
दिल में यादों के दाग़ जलते हैं 

जल रहा होता है दिल दीवाने का
वो समझते हैं, चिराग जलते हैं

अश्क सावन की धार बन के बहें
दर्द सीने में जब दहलते हैं

मोहब्बत, प्यार, अपनापन कहाँ है
रिश्ते पल-पल यहाँ बदलते हैं

हश्र इनका न जाने क्या होगा
ये जो अरमान दिल में पलते हैं

गिरे ज़मीन पे जो लोग उठ ही जाएंगे
गिरे ज़मीर से जो फिर कहॉ संभलते हैं

ढूँढें महफ़ूज़-सी कोई जगह, चलो यारो 
यहाँ तो आसमां बर्फ बन पिघलते हैं