ग़ज़ल / अश्विनी जेतली

ग़ज़ल / अश्विनी जेतली
अश्विनी जेतली।

खुशी और ग़म में होता है ज़रा सा फ़ासला, समझा
कि हमने ज़िन्दगी से ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा समझा

ग़मों को मान कर खुशियां  लगाईं हैं गले, लेकिन
खुशी को हमने नाहक ही ग़मों का ज़लज़ला समझा

तराना छेड़ कर वो जिंदगी का चल दिया चंचल
था उसने ज़िन्दगी को पानी का इक बुलबुला समझा

खुशी से अपने हिस्से की वो खुशियां दे गया सब को
उसे लोगों ने जाने फिर भी क्यूँ इक दिलजला समझा

खुदा सपने में आया और कहा कि प्यार बांटा कर
जब उसका हुकुम माना तो सभी ने मनचला समझा

सेहन तक आ गया ज़ालिम, सहन करना हुआ मुश्किल
तो फिर सीने को ही अपने मुक़द्दस करबला समझा

बदन की कैद से जब रूह निकली, तो लगी कहने 
अरे नादान यूं ही इस जहां को मरहला समझा