ग़ज़ल / अश्विनी जेतली

ग़ज़ल / अश्विनी जेतली
अश्विनी जेतली।

इससे पहले कि बनकर रेत धरती पर बिखर जाऊँ
तमन्ना है यही बस कि, तिरे दिल में उतर जाऊँ

अगर दिल में मेरे इक प्यार का तू दीप जला दे
मिरे हमदम मैं उसकी रौशनी से ही निखर जाऊँ

तन्हा हूँ तुम्हारे बिन? बताओ कौन कहता है 
तेरी यादों का झुरमट है इधर जाऊँ उधर जाऊँ

बिछड़ कर भी नहीं बिछड़ा, मेरे संग में हमेशा है
बिखरने तू नहीं देता, भला कैसे बिखर जाऊँ

ये दुनिया बेमुरव्वत है, दुनिया वाले कहते हैं
ये दिल फिर भी न माने तो, बता ऐ दिल किधर जाऊँ