लघुकथा/बीस लाख करोड़/मनोज धीमान

लघुकथा/बीस लाख करोड़/मनोज धीमान
मनोज धीमान।

पिछले दो दिन से वह शहर के बस स्टैंड पर बैठा था। भूखा प्यासा। उसके जैसे वहां और भी सैंकड़ों बैठे थे। कुछ अकेले। कुछ अपने परिवार के लोगों के साथ। सभी को बस की प्रतीक्षा थी। सभी जल्दी से जल्दी अपने-अपने गाँव लौट जाना चाहते थे। उसकी भी यही इच्छा थी। कितने सपने लेकर वह इस शहर में आया था। बड़ा आदमी बनने की उम्मीद लिए हुए उसने दो साल पहले शहर में आकर मजदूरी शुरू की थी। शहर के एक स्लम एरिया में एक बड़े से वेहड़े में एक छोटा सा कमरा किराये पर लिया था। उसकी आशाओं को अभी पंख भी ना लगे थे कि शहर में महामारी की वजह से लॉकडाउन लग गया। सब कुछ खत्म हो चुका था। काम धंधा, पैसा, राशन इत्यादि सब समाप्त हो चुका था। जब वेहड़े के मालिक ने सभी को वेहड़ा खाली करने के लिए कहा तो सभी अपना-अपना सामान उठाए कर बस स्टैंड की और चल दिए। उसने भी अख़बार में ख़बर पढ़ी थी कि सरकार द्वारा मजदूरों के लिए विशेष बसें व ट्रेनें चलाई जा रही हैं। बस स्टैंड पर तो वह पहुँच गया। मगर पिछले दो दिनों से वह बिलकुल भूखा था। अन्न का एक दाना भी पेट में नहीं गया था। इसलिए पेट की आग की लपटें निरतंत्र फ़ैल रही थीं। तभी वहां एक बड़ी सी गाड़ी आकर रुकी। उस गाड़ी से सफेद कुर्ता पजामा पहने एक नेता जी उतरे। नेता जी ने भूखे प्यासे बैठे प्रवासी मजदूरों की तरफ मुस्कुरा कर देखा। हाथ जोड़े। उसके बाद नेता जी ने सभी को एक-एक करके राशन बांटना शुरू किया। नेता जी के साथ उनकी पार्टी के कार्यकर्ता भी आये थे, प्रेस वाले भी। प्रेस वाले निरतंर नेता जी की राशन बांटे हुए तस्वीरें ले रहे थे, कुछ वीडियो बना रहे थे। भूख प्यास से बेहाल मजदूर बाहें फैलाये जा रहे थे। हर कोई चाहता था कि सबसे पहले उसे राशन मिल जाये। कहीं ऐसा ना हो कि उसकी बारी आते-आते राशन ही समाप्त हो जाये। नेता जी राशन बांटे जा रहे थे और दोहराये जा रहे थे - घबरायो मत सब को अपना -अपना हिस्सा मिलेगा। उसकी भी बारी आयी। नेता जी ने कागज़ की एक छोटी सी पोटली उसके हाथों में थमा दी और कहा - ये लो तुम्हारा हिस्सा। उसने खोल कर देखा। अख़बार के एक टुकड़े में दो रोटी, आचार और थोड़ी सी सूखी सब्जी थी। उसने एक निवाला मुँह में डाला और खाने लगा। अख़बार के टुकड़े को थोड़ा फैलाया तो उस पर ख़बर छपी थी - प्रधानमंत्री द्वारा देशवासियों के लिए बीस लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा। इस हैडलाइन तो पढ़ते ही निवाला उसके गले में अटक गया। तभी बस आ गई-बस आ गई का शोर मचा। उसने रोटी को अख़बार में लपेटा। अपने बैग में रख कर बिना समय गँवाए बस की तरफ दौड़  लिया।