समाचार विश्लेषण/कर्नाटक: मोहब्बत की दुकान चलायेगा कौन?

समाचार विश्लेषण/कर्नाटक: मोहब्बत की दुकान चलायेगा कौन?
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
बड़ी खुशी की बात कांग्रेस के लिये और राहुल गांधी के लिये हिमाचल के बाद कर्नाटक में भी मोहब्बत की दुकान खुल गयी । हिमाचल की मोहब्बत की दुकान तो भारत जोड़ो यात्रा के बीच में ही खुल गयी थी जबकि कर्नाटक में यात्रा के तीन चार महीने बाद । यानी भारत जोड़ो यात्रा के फल आने लगे हैं ? इस तरह जो नारा भाजपा ने दिया था कि कांग्रेस मुक्त भारत बनायेंगे , वही नारा लौटकर भाजपा की ओर आ गया है । बिहार में भी भाजपा मुक्त सरकार चल रही है । इस तरह जैसे धीरे धीरे करके कांग्रेस के हाथ से राज्य मुक्त होते जा रहे थे , वैसे वैसे भाजपा से भी मुक्त होने लगे हैं । एक काॅर्टून ने ध्यान खींचा है -एक सरोवर के किनारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह सिर पकड़कर बैठे हैं और सरोवर की ओर इशारा कर मोदी जी की ओर से कहा गया है -इतना कीचड़ डाला लेकिन कमल फिर भी न खिला ! हद हो गयी ! कमल कीचड़ में खिलता है , सब जानते हैं लेकिन गालियों के कीचड़ से नहीं ! दूसरों को नीचा दिखाने से नहीं और न ही अहंकार से खिलता है । अहंकार में ही तो नारा दिया कि काग्रेस मुक्त भारत बना देंगे और होने लगा उलट ! यह क्या हुआ ? क्यों हुआ ? यह तो पूछना ही पडेगा न ! इस पर विचार मंथन तो करना ही चाहिये कि नही ? किसी भी राजनीतिक दल को इस तरह देश से बाहर नहीं कर सकते ! देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल के बारे में ऐसा टार्गेट ? इनके पंडित जवाहर लाल नेहरू , महात्मा गांधी को पाठ्यक्रम से बाहर कर सकते हैं , लोगों के दिलों से बाहर नहीं कर सकते ! यह देख लिया होगा ! मुगल गार्डन का नाम बदल सकते हो , सद्भाव खत्म नहीं कर सकते ! सत्य को परेशान कर सकते हो , पराजित नहीं ! 
अब कर्नाटक में मोहब्बत की दुकान तो खुल गयी लेकिन सवाल यह उठ खड़ा हुआ है कि इसे चलायेगा कौन ? सिद्धरमैया या डी के शिवकुमार ? वैसे हिमाचल में भी महारानी प्रतिभा सिंह और सुक्खू में भारी रस्साकशी देखने को मिली थी लेकिन आखिरकार मोहब्बत की दुकान सुक्खू के हाथों में सौंप दी गयी थी ! अब दुकान चल निकली है हिमाचल में ! बारी कर्नाटक की है । यहां क्या फैसला होता है , सबकी धड़कनें बढ़ती जा रही हैं । डी के शिवकुमार वही हैं जो भाजपा के चक्रव्यूह से कांग्रेस सरकारों को बचाते आ रहे हैं । जेल भी भुगती और पैसा भी बहाने में देर नहीं लगाते पर जाति पाति को भी साधना है ! इस तरह संतुलन बनाना है कि सरकार पूरे समय निकाल पाये । हिमाचल और कर्नाटक की सफलता को तभी सन् 2024 के लोकसभा चुनाव में भुनाया जा सकेगा ! बहुत शांति और सोच विचार कर ही फैसला लेना होगा ! दुष्यंत कुमार कहते हैं :
हमको पता नहीं था , हमें अब पता चला
इस मुल्क में अब हमारी हुकूमत नहीं रही ! 

-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।