तुम्हें याद हो कि न याद हो

मुकेश भारद्वाज को याद करते हुए 

तुम्हें याद हो कि न याद हो
मुकेश भारद्वाज । 

-कमलेश भारतीय

तब मैंने बीएड की परीक्षा पास की ही थी । नवांशहर के मेरे बीएड काॅलेज की प्राध्यापिका व मेरी बहन डाॅ देवेच्छा ने मुझे काव्य पाठ प्रतियोगिता का पहली बार निर्णायक बनाया । परिणाम घोषित किया तो एक लम्बा सा , पतला सा लडका मेरे पास आया और विनम्रता से द्वितीय पुरस्कार दिए जाने का आभार व्यक्त करने लगा । वह होशियारपुर से आया था । वह मुकेश भारद्वाज था जो आज दैनिक जनसत्ता का दिल्ली में संपादक है ।

मुकेश ने कहा कि कोई राह सुझा दीजिए । मैं तब तक अध्यापन के साथ दैनिक ट्रिब्यून का नवांशहर में आंशिक रिपोर्टर हो चुका था और मुझे अध्यापन से ज्यादा पत्रकारिता में मजा और रोमांच आने लगा था । मैंने उसे पत्रकारिता की जितनी मेरी समझ थी जानकारी दी और होशियारपुर चूंकि मेरी ननिहाल था , इसलिए लकडी के खिलौनों पर फीचर लिखने का सुझाव दिया । मुकेश ने लिखा और दैनिक ट्रिब्यून में भेजा , जिसे तब रविवारीय के सहायक संपादक वेदप्रकाश बंसल ने प्रकाशित भी कर दिया । इसके बाद अनेक फीचर दैनिक ट्रिब्यून में आए । मैं चिंतपुर्णी जाते समय सपरिवार मुकेश का 1149 , कमेटी बाजार का पता खोजते मिलने पहुंच गया और उसके परिवार से मिला । बहन कैलाश अब शायद कुरूक्षेत्र रहती है । 

इके बाद मुकेश ने सन् 1985 में जनसत्ता में टेस्ट दिया और रिपोर्टर चुना गया । सन् 1990 में मैं भी शिक्षण को विदा कह दैनिक ट्रिब्यून में उपसंपादक बन कर चंडीगढ पहुंच गया । जनसत्ता कार्यालय में मुकेश से मिलने गया । कैंटीन में भीड होने के कारण हमने चाय की चुस्कियां सीढियों पर बैठ कर लीं और खूब बतियाए । 

मैं सन् 1997 में हिसार का रिपोर्टर बन कर हरियाणा आ गया तब से मुलाकात नहीं हुई लेकिन सम्पर्क बना रहा । एक दिन हिसार के नभछोर के संपादक ऋषि सैनी ने कहा कि मैं जनसत्ता के संपादक मुकेश को फोन लगाता हूं लेकिन सम्पर्क नहीं होता , बात करने की इच्छा है । मैंने तुरंत मुकेश को फोन लगा दिया । उसने बडे आदर से सर कह कर  संबोधित किया और मैंने ऋषि सैनी से बात करने को कहा । जब दोनों की बात खत्म हुई तब मुकेश ने कहा कि सर को फोन दीजिए । उसने बडे आग्रह से कहा कि आप तो पंजाब के कथाकार हो । जनसत्ता के लिए कहानी भेजिए । मैंने दूसरे दिन ही कहानी भेज दी और उसी आने वाले रविवारी जनसत्ता में प्रकाशित हो गयी । यह उसका मेरे प्रति आदर था या कृतज्ञता कह नहीं सकता । फिर और कहानियां भी भेजीं जो सूर्यनाथ सिंह जी प्रकाशित करते जा रहे हैं । उनका भी आभार । आज सुबह वैसे ही मन आया कि रास्ता तो एक शिक्षक पूरी क्लास को दिखाता है लेकिन कोई कोई मुकेश भारद्वाज जैसा प्रतिभावान अपनी मंजिल खुद बना और पा लेता है । बधाई मुकेश ।