समाचार विश्लेषण/शिक्षक दिवस की लौ कहां तक?

समाचार विश्लेषण/शिक्षक दिवस की लौ कहां तक?
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
शिक्षक दिवस मनाने की परंपरा हमारे यहां सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सम्मान से शुरू हुई जब उनकी घोड़ागाड़ी से शिष्यों ने घोड़े हटा कर खुद उसे खींचा । वे देश के राष्ट्रपति थे । उससे पहले एक दार्शनिक विद्वान् । बहुत सालों बाद फिर एक शिक्षक और वैज्ञानिक ए पी जे अब्दुल कलाम राष्ट्रपति बने और फिर से शिक्षक का महत्व का अहसास करवाया न केवल पद पर रहते बल्कि पद छोड़ने के बाद भी वे छात्रों को प्रेरित करने आते रहे । इसी सिलसिले में कलाम हिसार के वीडीजेएस स्कूल में भी आए थे और छावनी के आर्मी स्कूल में भी ।।बच्चों से कैसे उनके स्तर पर आकर बतियाना है , यह सीखने की कला थी । वे वैज्ञानिक होने के बावजूद मिसाइल मैन के नाम से जाने जाते थे और अंग्रेजी में कविताएं भी लिखते थे यानी संवेदनशील व्यक्ति थे । अनेक पुस्तकें भी लिखीं । उनका दिन तब खुशनुमा होता था जब वे छात्रों से बतिया लेते थे । हिसार के दोनों कार्यक्रम एक रिपोर्टर के तौर पर कवर किये । उनका शिक्षक रूप बड़े करीब से देखा जब वे मंच से उतर कर बच्चों से पूरी तरह घुल-मिल गये थे ।
क्या आज हमारे शिक्षक छात्रों के साथ यह दूरी पार कर सकते हैं ? शायद बहुत कम ऐसे शिक्षक निकलें । 
पुराने जमाने के गुरुजनों में गुरु द्रोणाचार्य का नाम बड़े आदर से लिया जाता है लेकिन यह आलोचना भी होती है कि भेदभाव करते हुए एकलव्य से अंगूठा क्यों मांग लिया ? गुरु के लिए तो सभी शिष्य एक समान होने चाहिए , पर वे तो राजगुरु ही निकले । समाज का एक वर्ग इस बात की आलोचना करता है । बेशक हमारे देश में श्रेष्ठ शिक्षक को द्रोणाचार्य पुरस्कार ही दिया जाता है ।  फिर उनका गुरुकुल भी तो हमारे प्रदेश में ही था । 
पुराने ग्रंथों में गुरु की महिमा का बखान जगह जगह मिलता है । गुरु को ब्रह्मा कहा /माना जाता है और कबीर जी ने तो कहा है :
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े 
काके लागूं पाय 
बलिहारी गुरु आपणो
 जिन गोबिंद दियो मिलाय,,,
गुरु की महिमा का बखान हो ही नहीं सकता चाहे सारी वनराई और सारी स्याही लगा दी जाये ।
सबसे पहली गुरु मां को माना जाता है । मां संस्कार देती है । फिर विद्यालय के गुरु आते हैं और फिर आते हैं हमें प्रशिक्षण देने वाले गुरु । हमारे खिलाड़ी अपने गुरुजनों यानी कोच को नहीं भूलते । यह अच्छी बात है । 
शिक्षक दिवस को वैसे ही एक दिन न मान कर औपचारिक तौर पर रस्म पूरी कर दीजिए बल्कि शिक्षक को सम्मान दीजिए और शिक्षक भी अपने कर्त्तव्य का निर्वाह सामर्थ्यानुसार करें । 
खुद जीवन की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की थी और पूरे सत्रह वर्ष शिक्षक रहा । अनेक प्रयोग किये । आज खुशी यह है कि मेरे छात्र विदेश में रहते भी फेसबुक पर मुझे खोजकर बात करते हैं । देश के तो मिल ही जाते हैं कहीं न कहीं । कहते है कि अध्यापक की यही पूंजी होती है और कोई उसकी कमाई नहीं होती।  सिर्फ अपने छात्रों के प्यार और सम्मान से ही शिक्षक का मन गद्गद् हो जाता है '...