समाचार विश्लेषण/मिले न सुर, मेरा तुम्हारा तो सुर कैसे बने प्यारा?

समाचार विश्लेषण/मिले न सुर, मेरा तुम्हारा तो सुर कैसे बने प्यारा?
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
वैसे तो मिले सुर मेरा तुम्हारा है लेकिन इन दिनों हरियाणा के रोहतक से सांसद डाॅ अरविंद शर्मा और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के बीच सुर ताल बिगड़ चुके हैं । मिले न सुर मेरा तुम्हारा तो सुर कैसे बने प्यारा ? मामला परशुराम जयंती से शुरू हुआ और पहरावार की गौड़ ब्राह्मण सभा की लगभग पंद्रह एकड़ जमीन से जुड़ा हुआ है । सरकार यह जमीन सभा को वापस नहीं कर रही । और डाॅ अरविंद शर्मा के अंदर जैसे खुद परशुराम जी की आत्मा आ गयी है और वे कह रहे हैं कि यह गलत है और सभा की जमीन सरकार तुरंत सभा के हवाले करे । रोहतक से पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री मनीष ग्रोवर जिनके प्यार में कभी अरविंद जी ने दूसरों के हाथ और आंखें निकाल देने की बात कही थी , अब वे भी निशाने पर हैं और मुख्यमंत्री भी निशाने पर हैं जिन्हें वे पूरी तरह उपेक्षित कर खुद को मुख्यमंत्री पद का अप्रत्यक्ष दावेदार बताने से संकोच नहीं कर रहे । उनका कहना है कि मनीष ग्रोवर को रोहतक से उनकी जीत कुछ हजम नहीं हो रहो और मुख्यमंत्री भी भ्रष्टाचार को दबाने में जुटे हैं । वैसे लगता है कि खुद अरविंद को ही अपनी रोहतक से जीत हजम नहीं हो रही ।
भाजपा कभी बड़ी अनुशासन प्रिय पार्टी थी लेकिन कांग्रेस व अन्य दलों से दलबदल करवा कर राज और सत्ता सुख तो भोग रही है लेकिन अनुशासन गायब होता जा रहा है । बेशक पहली मुख्यमंत्री के खिलाफ बयान देने के बाद वे केंद्र में बैठे उच्च नेताओं से ही मिले हैं लेकिन उनके सुर ज्यों के त्यों हैं । बल्कि और कड़वे वचन बोलने से संकोच नहीं किया । क्या डाॅ अरविंद पर अनुशासनात्मक कार्यवाही होगी ? क्या पार्टी के भीतर मुद्दे उठाने की बात होगी ? यही अनुशासनहीनता तो क्रांग्रेस को लगातार कमजोर करती जा रही है और अब यही अनुशासनहीनता की दीमक भाजपा को खोखली करने जा रही है ? जैसे अशोक तंवर कांग्रेस हाईकमान को ललकार रहे थे एक समय प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष होते हुए , वैसे ही डाॅ अरविंद शर्मा अपने ही मुख्यमंत्री को घेर कर अपमानित करने से भी संकोच नहीं कर रहे । डाॅ अरविंद शर्मा कभी कांग्रेस के करनाल से सांसद रहे और फिर मायावती के साथ चले गये । मारे मारे फिर रहे थे कि कोई लोकसभा चुनाव में कोई पार्टी टिकट दे दे । भाजपा को दीपेंद्र के खिलाफ कोई प्रत्याशी ही नहीं मिल रहा था । कभी वीरेंद्र सहवाग तो कभी दीपा मलिक की ओर देख रही थी भाजपा । अचानक दिखे डाॅ अरविंद शर्मा । टिकट थमा कर राहत की सांस ली और फिर हर हत्थकंडा अपना कर इन्हे लोकसभा तक पहुंचाया और आज वही इस तरह अहसान उतार रहे हैं । क्या इनके पीछे कोई और है ? क्या इन्हें प्रधानमंत्री कभी मुख्यमंत्री बना सकते हैं या यह इनका हसीन सपना है मुंगेरीलाल जैसा ? ये तो वही जानें लेकिन कितना बोलना है और कहां बोलना है , यह तो बता देना जरूरी है कि नहीं ? सुर कैसे ठीक करने हैं और कैसे मिलाने हैं , यह तो बताया जाये ,,,,,
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।