रिपीट/दो साल पहले 

रिपीट/दो साल पहले 
कमलेश भारतीय।

पंजाब के पटियाला से योगराज प्रभाकर व रवि प्रभाकर के संपादन में लघुकथा कलश का 360 पृष्ठ का चतुर्थ महाविशेषांक कल ही मिला । बधाई तो बनती है । इससे पहले लघुकथा लेखन के लम्बे सफर में खुद पंजाब से प्रयास पत्रिका का लघुकथा विशेषांक सन् 1970 में निकाला । और अब तक पांच लघुकथा संग्रह दे चुका हूं ।इसके बाद पटियाला से ही डाॅ श्याम दीप्ति ने अस्तित्व का विशेषांक दिया । सिमर सदोष भी हिंदी मिलाप और आजकल अजीत के माध्यम से इस विधा को प्रोत्साहन देते आ रहे हैं । रमेश बतरा ने तारिका व साहित्य निर्झर के विशेषांकों के बाद सारिका के उपसंपादक के रूप में योगदान दिया । डाॅ सुरेंद्र मंथन और मैंने संयुक्त रूप से सहयात्री लघुकथा संकलन का संपादन किया लुवियाना की एक पत्रिका के लिए । कैथल से दीपशिखा निकलती रही जैन बंधुओं के संपादन में और डाॅ शमीम शर्मा ने कुरूशंख का संपादन किया ।  डाॅ अशोक भाटिया जहां अवसर मिलता है संपादन की जिम्मेदारी लेकर विशेषांक दे देते हैं जिनकी कोई गिनती नहीं । अशोक जैन दृष्टि के अच्छे अंक दे रहे हैं । रेवाड़ी से तरूण जैन आगमन प्रकाशित करते रहे और मुकेश शर्मा भी वहीं से सक्रिय हुए लघुकथा में । अजय शर्मा और गीता डोगरा भी बहुत प्यार देते हैं लघुकथा को । कभी धर्मपाल साहिल भी विधा पत्रिका निकालते रहे । डाॅ कैले लुधियाना से अणु का पंजाबी में प्रकाशन चालीस साल से करते आ रहे हैं और कभी श्याम दीप्ति और श्याम अग्रवाल मिन्नी का प्रकाशन देरी से नहीं करते । पंजाब में सबसे ताज़ा और कहिए कि विधा में क्रांतिकारी काम आजकल योगराज प्रभाकर कर रहे हैं । महाविशेषांक रचना प्रक्रिया को केंद्र में रख कर निकाला गया है जो बहुत महत्त्वपूर्ण और सहेज कर रखने लायक बन गया है । ये वे पत्रिकाएं हैं जो तुरंत ध्यान में आ गयीं । हिमाचल की श्रेष्ठ लघुकथाएं का संपादन रत्नचंद रत्नेश ने किया तो रत्न चंद निर्झर ने हिमाचल के बिलासपुर में पहला लघुकथा सम्मेलन आयोजित किया । यही नहीं हरियाणा का लघुकथा संसार का संपादन किया प्रद्युम्न भल्ला ने । धर्मपाल साहिल व सुरेश जांगिड़ ने लघुकथाओं की पोस्टर प्रदर्शनियां लगा कर इसे लोकप्रिय बनाने में योगदान दिया । विदेशों में लघुकथा की बात करें तो सुधा ओम ढींगड़ा के संपादन में हिंदी चेतना के लघुकथा विशेषांक की याद आती है । आजकल वे विभोम स्वर के प्रकाशन से जुड़ी इस विधा को  सहयोग दे रही हैं । इसी प्रकार माॅरिशस के अभिमन्यु अनंत शबनम , रामदेव धुरंधर और राज हीरामन भी सहज ही स्मरण हो आते हैं । हिंदी चेतना में मुझे भी स्थान मिला । इन दिनों पलाश विश्वास भी प्रेरणा अंशु के माध्यम से लघुकथा को बढ़ा रहे हैं । कथा बिम्ब के डाॅ अरविंद भी सशक्त लघुकथाएं प्रकाशित करते हैं । गीता डोगरा ने पारसमणि में लघुकथा को प्रमुखता से प्रकाशित किया तो डाॅ अजय शर्मा ने साहित्य सिलसिला में । बलराम अग्रवाल व अविराम साहित्यिकी के संपादक उमेश महादोषी इन दिनों अच्छा मूल्यांकन कर विशेषांक दे रहे हैं । 
जहां तक बड़े भारी या कहिए महाविशेषांकों की बात है तो बलराम के संपादन में लघुकथा कोश याद आ रहे हैं । संभवतः वे पहले ऐसे संग्रह रहे । इंदौर से विक्रम सोनी के संपादन में लघु आघात ने बहुत योगदान दिया । राजस्थान में डाॅ रामकुमार घोटड़ भी नये से नये विषय पर लघुकथा संकलन संपादित करते आ रहे हैं तो दिल्ली में बैठे डाॅ कमल चोपड़ा की संरचना वार्षिकी का महत्त्व भी कम नहीं । इंदौर से सतीश राठी भी बड़े आयोजन करते हैं । कान्ता राय लघुकथा वृत्त के माध्यम से अपना योगदान दे रही हैं।  जम्मू कश्मीर की शीराजा की संपादिका रीटा ख्ड्याल ने समय की बात लघुकथा संग्रह निकाला । राजस्थान से लहर और शेष के लघुकथा विशेषांक भी याद हैं । बहुत बढिया बढ़िया । टिपटाॅप । संबोधन ने भी काम किया । पटना की ओर निकल जाऊं तो सतीश राज पुष्करणा ने भी काम किया । दिल्ली गाजियाबाद से कभी जगदीश कश्यप के संपादन में मिनी युग निकलता  रहा । हरियाणा से शुभतारिका के लघुकथा विशेषांकों ने भी धूम मचाई । उर्मि कृष्ण हर अंक में लघुकथाएं देती हैं निरंतर । कितनी ही पत्रिकाओं में प्रकाशन होता रहा । कुछ भूला , कुछ याद रहा । शकुंतला किरण पहली शोध करने वाली लघुकथा पर तो हरियाणा की डाॅ शमीम शर्मा दूसरी और हस्ताक्षर संकलन भी दिया । अंजना अनिल और महेंद्र सिंह महलान की जोड़ी ने राजस्थान के लघुकथा संसार को उजागर किया । उत्तर प्रदेश में बंधु कुशावर्ती की कात्यायनी का योगदान उल्लेखनीय । इंदौर की वीणा का भी । क्या क्या याद करूं ? क्या भूलूं , क्या याद करूं ?लगभग पचास वर्ष होने जा रहे हैं इस विधा में काम करते करते । बहुत कुछ तुरंत याद भी नहीं आता । वैसे रूपदेवगुण और शील कौशिक भी संकलन पर संकलन संपादित करते जा रहे हैं और मुकेश शर्मा ने भी लघुकथा समीक्षा और कुछ वरिष्ठ रचनाकारों के इंटरव्यूज के माध्यम से धुंध छांटने की कोशिश की ।  डिजीटल के जमाने में सुकेश साहनी लघुकथा डाॅट काॅम पर आए । बहुत सारे लोग रह गये होंगे । माफ कर दीजिएगा । बधाई योगराज प्रभाकर को इस महाविशेषांक के लिए फिर से । दिल से । जिसके बहाने मैंने यह सारी यात्रा कर ली ।  अब यह तो नहीं कह सकता कि जिसने इसे नहीं पढ़ा वह लघुकथा की वर्तमान स्थिति से अनजान रहेगा लेकिन अंक में दम है । यह तो कह सकता हूं ।
-कमलेश भारतीय