लघुकथा / सरकार का दिन

लघुकथा / सरकार का दिन

# कमलेश भारतीय 
घंटाघर चौक । काफी समय से खड़ा हूँ  । लोकल बस वही आ रही । दो चार आईं भी तो बुरी तरह ठसाठस भरी हुईं । मैं कस्बे का आदमी ठहरा । धक्कमपेल से घबरा गया । इसी डर से रुका रहा । 
- आप तांगे में चले जाये़ं ! 
एक भला आदमी सलाह देता है । 
मिलना जरूर होगा । उससे मिले साल डेढ़ साल हो गया ! समय कम है मेरे पास ! फिर भी जाऊंगा । क्या सोचेगी ? व्यस्तताओं के सरकंडे बिना वजह फैलते जा रहे हैं । 
पांच कदम स्टेशन की ओर जाता हूँ । तांगा बिल्कुल खाली है । आगे की सीट पर एक काला, गोल मटोल, चौदह पंद्रह साल का लड़का बैठा है । 
- नये बस अड्डे चलेगा ? 
- हां, साब ! 
- कितने पैसे ? 
- तीस । 
- चल फिर । 
- पीछे की सीट पर बैठ जाता हूँ । 
- नये बस अडडे, नये बस अड्डे का शोर चौड़ा बाज़ार के आसपास गूंजने लगता है । दो बाबू और आते हैं । एक वृद्ध भी आ जाता है ! इस तरह आधा दर्जन सवारियां हो जाती हैं । 
- चल मेरे शेर‌! 
- लगाम खींच देता है और घोड़ा हिनहिनाकर चल पड़ता है । 
- एक सवारी बस अड्डे! 
- वह लड़का फिर आवाज़ लगाता है तब बाबू कहता है कि, सवारियां तो पूरी हैं । क्यों भर रहा है मुर्गियों की तरह ! 
- एक कप चाय बनाऊंगा साब ! 
- वह दयनीय स्वर में कहता है ! 
दो सवारियां और मिल जाती हैं । टप् टप् शुरू होती है र साथ ही घोड़े को हल्ला शेरी ! 
चौराहे पर पहुंचते ही विफल बजती है । 
लाइसेंस निकाल ! 
-है नहीं, साब ! 
-है क्यों नहीं? ऊ पर से बारह सवारियां  ! 
आज जाने दो, साब ! 
गवर्नर का पुत्तर है क्या ? ला, पैसे निकाल, तेरा चालान करूं । 
-माफ कर दो, साब ! 
सवारियों में खलबली मच गयी है‌ । बस पकड़नी है । यहां जाना है, वहां जाना है । 
सभी मिलकर कहते हैं कि इसे माफ कर दो  ! 
-अच्छा, जा बेटा ! 
आंखें निकाल कर सिपाही चौक पर अपनी ड्यूटी देने लगता है । 
सवारियां सलाह देती हैं- फिर न बिठाना इतनी सवारियां ! लाइसेंस पास रखो ! अभी बच्चे हो । 
-साब, खायेंगे कहाँ से ? महीना बांध रखा है ! घंटाघर चौक पर पान वाले की दुकान पर पहुंचाते हैं । इस बार घर में फाकाकशी चल रही है । इसे कहां से दें? हफ्ते बाद तांगा निकाला है । और वह आज के दिन ही मांग रहा है पैसे ! 
इतने में एक टैक्सी सिपाही के पास रुकती है । कुछ नोट हाथ में थमाये जाते हैं और फिर फुर्र हो जाती है ! 
मुझे लगने लगता है कि सरकार के सारे कानून इस तांगे वाले लड़के पर ही लागू होते हैं ! 
टप् ! टप्! तांगा चल रहा है ! 
-पर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।