लो, आ रहे हैं भगवान्/कमलेश भारतीय 

वर्तमान हालातों पर एक टिप्पणी 

लो, आ रहे हैं भगवान्/कमलेश भारतीय 
कमलेश भारतीय।

वैसे तो भगवान् कहीं गये नहीं थे लेकिन उनके आने की खबर आ रही है । कोरोना के संकट और लाॅकडाउन के चलते भगवान् को न चाहते भी अज्ञातवास में जाना पड़ा था । तिरुपति मंदिर , साई बाबा, वृंदावन धाम और मा वैष्णो देवी सबके सब क्वारेनटाइन में चले गये थे । लम्बी लम्बी कतारें और प्रसाद के लिए मारा-मारी सब समाप्त । मैंने खुद तिरुपति मंदिर में दर्शन के लिए छह घंटे लम्बी इंतजार की थी । बेशक बढ़िया विश्राम गृह में टी वी भी लगे थे और खिचड़ी भी तिरुपति की कृपा से मिल गयी थी । टीवी पर उसी प्रदेश की भाषा में रामायण प्रसारित हो रही थी जिसे सारी कथा जानने के कारण हम समझ पा रहे थे । अब सभी बड़े मंदिरों में भगवान् वापस आ रहे हैं आठ जून से । इन्हीं दिनों ओ माई गाॅड फिल्म भी देखने का मौका मिला जिसमें धर्म के नाम पर किए जाने वाले पाखंड पर चोट की गयी थी बहुत खूबसूरती से । परेश रावल अदालत में कहते हैं कि भगवान् को दूध पिलाने की मुझे सलाह दी गयी तो मंदिर गया । देखा कि दूध पिलाया जा रहा है लेकिन पी कौन रहा है ? दूध तो मंदिर के पीछे की नाली से गटर में जा रहा है और गटर के किनारे एक गरीब आदमी दूध को तरस रहा है । बस । मैंने अपना दूध उसे पिला दिया तब उसने कहा -भगवान् तेरा शुक्रिया । काश , हम इस सरल सी बात को समझ पाते । परेश रावल ने चर्च और दरगाहों पर भी चोट की । चर्च की मोमबत्तियां किसी गरीब के झोंपड़ी को रोशन कर सकती हैं । इसी तरह इतनी सारी चादरें  गरीबों के काम आ सकती हैं । यह ऐसी आंख खोल देने वाली फिल्म है कि ओह माई गाॅड । वैसे देखने वालों ने देखा कि भगवान् तो बाहर ही थे । मंदिर , गुरुद्वारे और चर्च सब जगह खाना बनाया जा रहा था उनके लिए जो इससे महरूम थे । यह सही भूमिका थी धार्मिक स्थलों की । ज़रूरतमंदों के लिए भोजन उपलब्ध करवाना । कितनी बड़ी संख्या में खाने के पैकेट बांटे जाते रहे । भगवान् तो मौजूद था पर देखने वालों आंखें नही थीं । हम भगवान् को महसूस कर सकते हैं जब हम किसी प्यासे को पानी पिलाते हैं , किसी भूखे को खाना खिलाते हैं और अपनी तीर्थ यात्रा की रकम गरीबों में बांट देते हैं । ओ माई गाॅड में सही व्यंग्य किया कि जो धर्म गुरु हैं, क्या उन्होंने भगवान् की फ्रेंचाइजी ले रखी है ? ये प्रतीक मात्र हैं । भगवान् तो सर्वव्यापक हैं और न जाने किस भेष में मिल जाएं । बस ।आंखें खुली रखने की जरूरत है । फिर भी भगवान् आ रहे हैं अपने अज्ञातवास से । बहुत बहुत बधाई ।