अजब विकास की गजब कहानी खत्म

खैर जो भी हो विकास दुबे जैसे गैंगस्टर पर काहे का रोना? इससे तो सबक मिलना चाहिए।

अजब विकास की गजब कहानी खत्म
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
कल उज्जैन के महाकाल मंदिर के प्रांगण से सुरक्षाकर्मियों द्वारा कानपुर वाले विकास दुबे को पकड़ लिये जाने की खबर सुर्खियों में थी लेकिन आज सुबह सुर्खियां बदल गयीं । विकास दुबे को लखनऊ लाते समय पुलिस की गाड़ी पलट गयी और विकास दुबे ने भागने की कोशिश की जिसमें पुलिस कार्यवाही में विकास दुबे मारा गया । कल उज्जैन के महाकाल मंदिर से विकास दुबे की गिरफ्तारी को आत्मसमर्पण का नाटक बताया गया था तो आज पुलिस की गाड़ी पलट जाना और विकास दुबे का भागने की कोशिश करना भी किसी नाटक से कम नहीं । हालांकि विकास दुबे को इसी बात का डर था कि यूपी पुलिस उसे एनकाउंटर में मार न डाले इसीलिए उसने मध्य प्रदेश के उज्जैन में जाकर खुद घोषणा की कि मैं हूं विकास दुबे कानपुर वाला ताकि यूपी पुलिस उसका एनकाउंटर न कर सके लेकिन पुलिस अधिकारी बयान दे रहे थे कि विकास दुबे का वह हश्र होगा कि दूसरे अपराधी याद रखेंगे । वही हुआ भी । इसके साथ ही बहुत से रहस्य रहस्य ही रह गये कि आखिर कौन कौन विकास दुबे की पीठ पर हाथ रखे हुए थे । कौन कौन उसे मिनट मिनट की खबर दे रहे थे जिसके बल पर वह पुलिस से छह दिन बचता रहा और चकमा देकर भाग निकलने में सफल होता रहा । बहुत सी बातें अब कभी सामने नहीं आयेंगी । 
विकास दुबे ने उज्जैन पुलिस को चौंकाने वाली कुछ जानकारियां जरूर दीं कि उसे पुलिस वालों ने ही रेड की सूचना दी थी । सुबह रेड होने वाली थी लेकिन आधी रात को ही हो गयी ।  उसे खबर थी कि एनकाउंटर होगा उल्टे उसने ही आठ पुलिसकर्मियों का एनकाउंटर कर डाला । फिर इससे भी बड़ी चौंकाने वाली बात कि पुलिसकर्मियों को जलाने की योजना थी और पचास लीटर मिट्टी का तेल भी ला रखा था लेकिन और पुलिसकर्मियों के आ जाने से भागना पड़ा और सबको अलग अलग भागने को कहा । इस तरह विकास पहुंचते पहुंचते फरीदाबाद तक पहुंच गया । वहां से पुलिस के आने से पहले भाग निकलने में सफल रहा लेकिन उज्जैन के महाकाल मंदिर में आखिरी माथा टेकने के बावजूद ज़िंदगी नहीं मिली । 
विकास दुबे की अजब कहानी में गजब घटनायें हैं । पुलिस थाने में संतोष को पुलिसकर्मियों के सामने मार गिराया लेकिन किसी पुलिस वाले ने गवाही नहीं दी । इसलिए विकास बरी हो गया । आखिर उसी विकास के हौंसले इतने बढ़े कि आठ पुलिसकर्मियों को ही मौत के घाट उतारने में कोई हिचक नहीं की । इतना हौंसला किसके दम पर ? किसने पीठ थपथपाई ? कैसे बचता रहा बरसों से ? क्या दूसरे अपराधी इससे सबक लेंगे ? क्या प्रियंका गांधी के सवालों के जवाब मिलेंगे ? नरोत्तम मिश्र और विकास दुबे में क्या कोई कनेक्शन था ? कैसे सरकारी गाड़ी विकास के घर मिली? अखिलेश का कहना है कि कार नहीं पलटी बल्कि सरकार पलटने से बचाई गयी? अखिलेश ने यह भी पूछा था कि यह आत्मसमर्पण था या नाटक ? यह भी एक टोल प्लाज़ा पर मीडिया कर्मियों को रोका गया और इतने में एनकाउंटर हो गया । मीडिया के सवालों के जवाब नहीं दिये गये । खैर जो भी हो विकास दुबे जैसे गैंगस्टर पर काहे का रोना ? इससे तो सबक मिलना चाहिए ।