यह कोई फिल्मी पटकथा नहीं 

राणा जी, माफ करना

यह कोई फिल्मी पटकथा नहीं 
कमलेश भारतीय।

राजनीति रह गयी एक मुखौटा?
-कमलेश भारतीय 
जिस तरह से शराब घोटाले में दो बार विधायक रह चुके सतविंद्र राणा का नाम आया और उन्हें जिस तरह एमएलए होस्टल से पकड़ा  गया, वह भी कम रहस्यपूर्ण नहीं। कभी खबर आई कि एमएलए होस्टल तो कभी आई एमएलए होस्टल के बाहर पकड़ा। है न फिल्मी पटकथा। सन् 2007 से राजनीति में सक्रिय सतविंद्र राणा कांग्रेस में भी रहे और पिछला विधानसभा चुनाव जजपा की टिकट पर लड़े। अब कोई भी राजनीतिक पार्टी सतविंद्र राणा की खुलकर आलोचना भी नहीं कर सकती क्योंकि राणा ने सबसे दोस्ती बनाए रखी और सबके रसूख का फायदा उठाया। सवाल यह उठता है कि क्या राजनीति सचमुच एक माॅस्क ही रह गयी यानी मुखौटा? सिर्फ मुखौटा? जनसेवा सिर्फ एक बहाना? बहुत बड़ा सवाल है। राणा जी, माफ करना गलती जनता से हो गयी जो दो दो बार आपको विधायक चुन लिया। राजनीति में क्या इस धंधे को जमाने आए थे? लाइसेंस लेकर कानून सम्मत काम करते करते तस्करी में नाम कैसे जुड़ गया? इसीलिए तो राजनीति आम आदमी के बस का खेल नहीं रह गयी। पहले टिकट के लिए चंदा, फिर चुनाव के लिए पैसा। कहां से लाए आम आदमी? इतना तो फिल्मी पटकथा में ही लिखा जा सकता है। सच। राजनीति को स्वच्छ कौन कर सकता है? कहां तो एक कृष्णकांत थे। जिन्हें जब तक सारा चुनाव का हिसाब मिल नहीं गया था तब तक चैन नहीं पड़ा था। कहां ये हमारे आजकल के नेता जिन्हें खुद नहीं पता होता कि कितना पैसा चुनाव पर खर्च हो गया या हो रहा है?  चुनाव बिन पैसे लड़ने की कोई सोच भी नहीं सकता। अन्ना हजारे के इंडिया अगेंस्ट करप्शन वाले नेता भी नहीं। चुनाव के समय के दृश्य याद कीजिए। सारी दीवारें पट जाती हैं इश्तिहारों और बैनरों से। चुनावी रैलियों पर अनाप शनाप खर्च के लिए पैसा कहां से आता है? चुनाव खर्च की सीमा के बाहर खर्च पकड़ा क्यों नहीं जाता? राजनीतिक दलों को चंदा भी सत्ता के आधार पर ही मिलता है। अब कांग्रेस धनाभाव में है क्योंकि सत्ता से बाहर है। पर सत्ता परिवर्तन के खेल में होटलों और रिजोर्ट्स के खर्च कौन झेलता है? कितनी सारी बातें सतविंद्र राणा के बहाने खुल कर सामने आ रही हैं। सबसे बड़ी बात कि क्या हमारे युवा नेता इस राजनेता को पार्टी से बाहर करने की हिम्मत दिखायेंगे? अब तो और किसका इंतजार है? किसका है इंतज़ार? सबसे खुशी की बात कि डाॅ रमेश पूनिया को मीडिया ने फिर कोरोना योद्धा बना दिया। स्वास्थ्य विभाग ने उन्हें फिर काम सौंपा जो छीन लिया था। काश, जनता और मीडिया इतना जागरूक रहे तो कोई सतविंद्र राणा नहीं बन सकेगा।