मेरी यादों में जालंधर- भाग उन्नतीस 

पेंटर आर्टिस्ट से कार्टूनिस्ट तक संदीप जोशी 

मेरी यादों में जालंधर- भाग उन्नतीस 

- कमलेश भारतीय
चंडीगढ़ की यादों में गुलाब की तरह महकती एक याद हैं - संदीप जोशी ! वही संदीप जोशी, जिसके बनाये कार्टून आप देखते हैं, सुबह सुबह 'दैनिक ट्रिब्यून' में ताऊ बोल्या' व 'द ट्रिब्यून' में ' इन पासिंग' के रूप में ! जी हां, आज उसी की बात होगी, जो‌ उत्तरी भारत के प्रमुख कार्टूनिस्टों में से एक है। 
मेरी पहली पहली मुलाकात करवाई थी, खटकड़ कलां के गवर्नमेंट आदर्श सीनियर सेकेंडरी स्कूल के सहयोगी डाॅ सुरेंद्र मंथन ने ! जरा यह भी बताता चलूँ कि डाॅ सुरेंद्र मंथन 'द ट्रिब्यून' के चंडीगढ़ के स्टाफ रिपोर्टर श्याम खोसला के छोटे भाई थे । तो एक बार जिन दिनों डाॅ वीरेंद्र मेहंदीरत्ता पंजाब विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष थे तब उन्होंने दो दिवसीय कहानी कार्यशाला आयोजित की थी, जिसमें डाॅ महीप सिंह मुख्यातिथि थे और पहले दिन सबसे पहले मेरी ही कहानी ' अगला शिकार ' का पाठ करवाया गया । 
पहले दिन का सत्र समाप्त होते ही एक  छोटा सा लड़का डाॅ मंथन को मिलने आया । वह संदीप जोशी था । चर्चित कथाकार बलराज जोशी का बेटा ! बलराज जोशी से मेरी मुलाकात फूलचंद‌ मानव ने ही करवाई थी और चंडीगढ़ के सेक्टर बाइस स्थित काॅफी हाउस में काॅफी की चुस्कियों के बीच मैं अनाड़ी, अनजान सा कथाकार कहानी लिखने का ककहरा सीख रहा था ! फिर बलराज जोशी असमय ही चले गये दुनिया से, पीछे एक बेटा और पत्नी को संघर्ष के लिए जूझने के लिए ! जोशी की पत्नी को पति की जगह अनुकम्पा आधार पर जाॅब भी मिल गयी और सरकारी आवास भी सिर ढंकने के लिए ! वहीं संदीप जोशी से मेरा परिचय करवाया डाॅ मंथन ने और बड़े आग्रह से कहा कि संदीप बहुत ही शानदार पेंटिंग्स बनाता है, क्यों न एक फीचर संदीप पर लिख दूँ 'दैनिक ट्रिब्यून' में ! मैंने कहा कि क्या ऐसे अचानक मुलाकात के बाद खड़े खड़े फीचर लिखा जाता है ! मुझे स़दीप की पेंटिंग्स देखनी पड़ेंगी ! उस दिन रहने का इंतज़ाम विश्वविद्यालय में ही था लेकिन डाॅ मंथन ने सुझाव दिया कि आप संदीप के साथ इसके घर आज रह लीजिए, और देख लीजिए इसकी पेंटिंग्स ! सुझाव अच्छा लगा और मैं अपना बैग लिए संदीप जोशी की साइकिल के पीछे बैठकर इनके सरकारी आवास पर पहुँच गया । वहाँ इनकी मम्मी ने बड़ा अच्छा दाल भात बनाया और जब हम दोनों फ्री हुए खाने पीने से तब मैंने कहा कि अब दिखाओ अपनी पेंटिंग्स ! एक कमरे में संदीप की पेंटिंग्स खाकी कवर्ज में लपेटीं बड़े करीने से रखी थीं । वह एक एक कर कवर उतार कर पेंटिंग्स दिखाता गया और एक पेंटिंग जो मुझे पसंद आई उसकी फोटोकॉपी डाक से भेजने की कहकर मैं नवांशहर लौट आया । कुछ दिनों बाद डाक में फोटोकॉपी मिल गयी जो 'दैनिक ट्रिब्यून' में फीचर के साथ प्रकाशित भी हो गयी । मैं नवांशहर से 'दैनिक ट्रिब्यून'  का अंशकालिक रिपोर्टर था और जब भी चंडीगढ़ जाता तब 'दैनिक ट्रिब्यून' कार्यालय जरूर जाता । संदीप जोशी पर लिखे फीचर के बाद जब ऑफिस गया तब समाचार संपादक व मेरे पत्रकारिता के गुरु सत्यानंद शाकिर ने संकेत से अपनी ओर बुलाया । वे मुझे मेरे प्रकाशित समाचारों पर टिप्स देते रहते, कभी डांट देते तो कभी सराहते ! उस दिन सराहना मिली कि संदीप जोशी पर लिखकर बहुत अच्छा किया, मैं भी बलराज जोशी का मित्र रहा हूँ और मैं इस परिवार की मदद करना चाहता हूँ लेकिन मेरे पास इनकी कोई जानकारी नहीं थी । तुम एक उपकार और कर दो, उनके बेटे संदीप को मिला दो ! मैंने कहा कि आज ही मिलवाता हूँ और मैं लोकल बस में सेक्टर बाइस स्थित संदीप के घर पहुँच गया । जब सारी बात बताई तब संदीप ने अपनी साइकिल उठाई और मुझे पीछे बिठाकर सेक्टर 29 तक 'दैनिक ट्रिब्यून' के ऑफिस तक ले गया ! सत्यानंद शाकिर के सामने संदीप को ले जाकर खड़ा कर दिया । उनके मन में पहले से ही कुछ चल रहा था । वे संदीप जोशी और मुझे संपादक राधेश्याम शर्मा के पास ले गये और संदीप पर प्रकाशित मेरा फीचर दिखाकर संदीप के बारे में कुछ प्लान करने की कही और कुछ दिन बाद 'दैनिक ट्रिब्यून ट्रिब्यून' में 'ताऊ बोल्या' कार्टून के साथ संदीप जोशी का कायाकल्प एक कार्टूनिस्ट के रूप में हो चुका था ! फिर सन् 1990 में मैं 'दैनिक ट्रिब्यून में उप संपादक के तौर पर आ गया । संदीप तब तक अपनी पढ़ाई पूरी कर चंडीगढ़ प्रशासन में अच्छी नौकरी पा चुका था और अब उसके पास चमचमाता स्कूटर था । उसका कार्टून कोना अब भी बरकरार था । एक दिन संदीप मेरे पास सलाह लेने आया कि उसे 'जनसत्ता' के प्रमोद कौंसवाल यह ऑफर दे रहे हैं कि 'जनसत्ता' में कार्टून बनाने का काम शुरू करवा देता हूं, जो अस्थायी नहीं बल्कि स्थायी नौकरी के रूप में होगा ! संदीप मेरे से सलाह मांगने आया था कि यह पेशकश स्वीकार कर‌ लूं या नहीं ?
मैंने कहा- संदीप कार्टून के कैरीकैचर रोज़ रोज़ लोकप्रिय नहीं होते ! इसी 'ताऊ बोल्या' ने तुम्हें चौ देवीलाल से पांच हज़ार रुपये का इनाम दिलवाया और नये कार्टून को लोकप्रिय होने में समय लगेगा और यह जरूरी नहीं कि लोगों को पसंद आये या न आये ! इस तरह मेरी राय संदीप को सही लगी और उसकी लम्बी पारी आज तक जारी है । 
इसके बाद मैंने 'द ट्रिब्यून' के सहायक संपादक कमलेश्वर सिन्हा को जानकारी दी कि संदीप को कैसी ऑफर आ रही है। इसके बारे में कुछ सोचिए ! अब आगे क्या हुआ या कैसे हुआ, मैं नही जानता लेकिन संदीप जोशी 'ट्रिब्यून' में स्थायी तौर पर आ गया और इस तरह कार्टूनिस्ट के तौर पर हम उसे आज तक देख रहे हैं । उसके बनाये दो कार्टूनों का आनंद लीजिए ! पहला जब चौ बंसीलाल को केंद्र से हटाकर हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया गया था और उन्हें बगल में फाइलें दबाये दिखा कर नीचे कैप्शन‌ थी - इबकि बार मैं इमरजेंसी लगाने नहीं आया ! यह ह्यूमर नहीं भूला । इसी तरह दूसरा कार्टून याद है । ‌मैं हिसार आ चुका था। ‌कार्टून था चौ भजनलाल पर ! गोलमेज़ के एक तरफ कांग्रेस हाईकमान सोनिया गाँधी बैठी हैं और सामने चौ भजनलाल ! 
नीचे कैप्शन थी - यो कैसी मीटिंग होवे? एक को हिंदी को न आवै और दूजे को अंग्रेज़ी ! उस दिन चौ भजनलाल हिसार में ही थे और मीडिया को बुला रखा था । मैं 'दैनिक ट्रिब्यून' साथ ही ले गया और चौ भजनलाल को वह कार्टून दिखाया । वे बहुत हंसे और बोले- इतनी अंग्रेज़ी तो आवै सै ! 
तीसरी बार संदीप ने फिर सलाह मांगी, जिन दिनों मैं 'दैनिक ट्रिब्यून' से इस्तीफा देकर हरियाणा ग्रंथ अकादमी का उपाध्यक्ष हो गया था। ‌संदीप को हरियाणा साहित्य अकादमी पुरस्कृत करने जा रही थी और वह असमंजस में था कि पुरस्कार ग्रहण करे या नहीं ? मैने सलाह दी कि यह तुम्हारी अपनी प्रतिभा का सम्मान है, ले लो और वह पुरस्कार लेने समारोह में आया । एक बार वह हिसार के बड़े स्कूल  विद्या देवी ज़िंदल स्कूल की आर्टिस्ट कार्यशाला में आया, तब मुझे इतनी खुशी हुई कि उसे अपने घर बुलाया और मीडिया के मित्रों को भी बुला लिया ! इस तरह अनजाने ही मैं संदीप जोशी की ज़िंदगी के महत्त्वपूर्ण मोड़ों पर मैं शायद उसके साथ रहा ! अब वह रिटायरमेंट के निकट है और सोच रहा है कि फिर से कार्टूनिस्ट से पेंटर आर्टिस्ट बन‌ जाये और अपने कथाकार पिता बलराज जोशी पर किताब प्रकाशित करने की योजना भी है ! 
मेरे अंदर से आवाज़ आती है कि कहीं मुझसे कोई भूल‌ तो नहीं हुई, एक प्रतिभाशाली पेंटर आर्टिस्ट को कार्टूनिस्ट बनने की ओर‌ सहयोग करके? 
शायद आज इतना ही काफी! कल फिर मिलते हैं!