मेरी यादों में जालंधर - भाग तेइस 

वह पहली कहानी के छपने की पुलक...

मेरी यादों में जालंधर - भाग तेइस 

- कमलेश भारतीय
यादें भी क्या हैं, आती हैं तो आती ही चली आती हैं, इनका न कोई ओर, न कोई छोर! जैसे पतंग उड़ाने वाली डोर की चरखड़ी, जो लगातार खुलती जाती है । पंजाब विश्विद्यालय की कवरेज सौंपते समय संपादक विजय सहगल ने कहा था कि कोशिश करो कि हर विभाग पर कुछ न कुछ खोजकर लिखो ! इस तरह मैं लगभग हर विभाग की परिक्रमा करने गया था । सबसे हैरान किया - गा़धी अध्ययन संस्थान के विद्यार्थियों ने, जब उन्होंने कहा कि हमारी महात्मा गाँधी में या इनके शोध में कोई खास दिलचस्पी नहीं ! हमें तो पंजाब विश्वविद्यालय में दाखिला लेकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने के लिए होस्टल की सुविधा चाहिए थी और वह पा ली ! सबसे आसान है इसमें दाखिला लेना।कमाल ! 
खैर मैं आपको आज विभागों की यादों से हटकर एक बहुत मज़ेदार याद बताने जा रहा हूँ । वह बात है जिसे दस्यु सुंदरी फूलन देवी के रूप में जाना जाता था, जिसके दुखांत पर फिल्म भी बनी थी ! वही फूलन देवी ,  जो बाद में सांसद भी चुनी गयी ! वे रंग की थोड़ी सांवली थीं । उन्हें एक बार पंजाब विश्वविद्यालय में व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया गया । लाॅ आडिटोरियम में ले जाने से पहले वी आई पी रेस्ट हाउस में मीडिया से मिलवाया गया। उन दिनों ऐसे समाचार आ रहे थे कि दस्यु सुंदरी ब्यूटी पार्लर जाती हैं।  हमारे एक साथी पत्रकार ने यही सवाल पूछ लिया कि क्या आप ब्यूटी पार्लर जाती हैं? 
इस पर फूलन देवी ने गुस्से में कहा कि यदि मैं ब्यूटी पार्लर जाती हूँ तो कौन स्साला मुझे रोक सकता है? दूसरी बात यह कि यदि मैं साफ सुथरी बन कर आपके बीच न आऊं तो कौन मुझे देखने - सुनने आयेगा? इसके बाद लाॅ आडिटोरियम में ले जाया गया । मंच पर संचालन करने वाले से फूलन के पति और जीजा उमेद कश्यप ने भी कुछ बोलने की कही । संचालक ने फूलन देवी से पूछा कि क्या उन्हें भी दो मिनट दिये जायें अपनी बात रखने के लिए ! इस पर एकदम भड़क गयीं फूलन देवी और मंच पर आकर बोलीं कि हमारे सिवाय किसी का 'भासन' नहीं होगा ! ऐसी थी फूलन देवी ! यह रौबीला अंदाज़ आज तक याद है । उमेद सिंह से इतने बरसों बाद मुलाकात हुई आजकल उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के उचाना के चुनाव के दौरान ! वे समर्थन देने आये थे और मैं कवरेज करने ! जब दुष्यंत जनसभा को संबोधित कर रहे थे,  तब वे एक किनारे खड़े सिगरेट पी रहे थे ! ये वही उमेद कश्यप हैं, जो पूर्व मुख्यमंत्री चौ भजनलाल के सामने करनाल लोकसभा चुनाव में मैदान में उनके सामने आ गये थे, चुनाव लड़ने और जीवन में पहली और आखिरी बार चौ भजनलाल हारे थे तो उमेद कश्यप द्वारा वोट काटने के फंडे के चलते ! इसे कहते हैं राजनीति ! जो राजनीति के चाणक्य और अपराजेय माने जाते थे, उन्हीं को हारना पड़ा ! यही जीवन की इकलौती हार रही ! 
इस किस्से के बाद फिर लौटता हूँ साहित्य की ओर !आजकल फिल्मी दुनिया में एक लोकप्रिय गीतकार हैं, इरशाद कामिल ! जो पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के हिंदी विभाग के पूर्व छात्र ही नहीं, फिल्मी दुनिया में शायद इकलौते पी एच डी गीतकार हैं ! उन्होंने डाॅ सत्यपाल सहगल के निर्देशन में पी एच डी की है लेकिन मेरी याद कुछ और तरह से जुड़ी है इरशाद से ! ् इरशाद कहानियां लिखते थे । पर वे कहानियां भेजते ' जनसत्ता' में ! दुर्योग ऐसा कि कोई कहानी प्रकाशित न हुई। मुझे बताया जुल्फिकार ने, जो हमारे काॅमन फ्रेंड थे। मैनें जुल्फिकार से कहा कि मुझे इरशाद से मिलवाओ ! मुझे याद हैं कि शनिवार का दिन था और मेरी नाइट ड्यूटी थी और शनिवार को ही कथा कहानी पन्ने का मैटर जाना था। वे दोनों दोपहर के समय मोहाली हमारे घर आये ! इरशाद अपने साथ तीन कहानियाँ भी लाये थे । कुछ देर बातचीत के बाद चले गये । मैं नाइट ड्यूटी पर जाते समय तीनों कहानियाँ साथ ले गया और जैसे ही चंडीगढ़ सिटी एडीशन का मैटर भेजकर थोड़ी फुर्सत मिली, मैंने इरशाद की कहानियाँ बैग से निकालीं और पढ़ डालीं ! आतंकवाद पर एक बहुत प्यारी और‌ भावुक कर देने वाली कहानी थी, जिसमें आतंकवादी एक युवक की हत्या कर देते हैं लेकिन उसकी आत्मा कैसे अपने गांव तक पहुँचते पहुँचते सारे परिवारजनों को याद करते आत़ंकवाद के खतरों के प्रति सचेत करती है। कुछ समय इरशाद ' दैनिक ट्रिब्यून' में सहयोगी  भी रहे! फिर समय के फेर में मुझे हरियाणा ग्रंथ अकादमी का उपाध्यक्ष बनने का अवसर मिला । ‌उन दिनों तक इरशाद एक सफल गीतकार बन कर फिल्मी दुनिया में स्थापित हो चुके थे कि उन्हें पंजाब विश्वविद्यालय की याद आई। हिंदी विभाग ने उन्हें आमंत्रित किया। उस समारोह में मैं भी गया ! इरशाद ने हिंदी विभाग को बारह लाख रुपये की राशि दी, जिससे प्रतिभाशाली छात्रों को हर वर्ष छात्रवृत्ति दी जा सके ! फिर इरशाद पत्रकारों से जब फ्री हुए तब मुझे जफ्फी में ले लिया! मै़ने पूछा -क्यों याद है वह पहली कहानी ! 
इरशाद ने मुस्कराते कहा कि सब याद है ! बस, एक अध्यापक को या संपादक को इतनी सी मुस्कराहट चाहिए ! 
कल फिर मिलते हैं- यादों के साथ !