साहित्य अकादमी उपाध्यक्ष प्रो. कुमुद शर्मा से बातचीत 

`सभी भारतीय भाषाओं के बीच समन्वय स्थापित करने का रहेगा प्रयास'

साहित्य अकादमी उपाध्यक्ष प्रो. कुमुद शर्मा से बातचीत 

- कमलेश भारतीय 
साहित्य अकादमी की नवनिर्वाचित उपाध्यक्ष प्रो कुमुद शर्मा का जन्म मेरठ में हुआ लेकिन पालन पोषण व एम ए, पीएचडी तक की शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई । एम.ए में सर्वोच्च अंकों का रिकॉर्ड बनाकर तीन स्वर्ण पदक प्राप्त किए। मीडिया में डी लिट रांची विश्वविद्यालय से की । आईएएस बनने का संकल्प था पर विवाह के बाद अध्यापन का विकल्प चुना। विवाह से पूर्व एम ए करते ही इलाहाबाद के एक महाविद्यालय में तीन महीने पढ़ाया ।  यू जी सी फैलोशिप प्राप्त होने पर डॉ जगदीश गुप्त के निर्देशन में ‘ नयी कविता में राष्ट्रीय चेतना के स्वरूप विकास ‘ विषय पर पर पीएचडी की उपाधि । विवाह के उपरांत दिल्ली आते ही जीसेस एंड मेरी कॉलेज में  अध्यापन शुरु किया । फिर दिल्ली के एस पी एम कॉलेज, आई पी कॉलेज , शिवाजी कॉलेज में पढ़ाने के बाद के बाद सन् 2004 से दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में हैं। इस समय हिंदी विभाग की अध्यक्ष एवं इसी विश्वविद्यालय में हिंदी माध्यम कार्यालय निदेशालय के कार्यवाहक निदेशक का दायित्व भी सँभाल रही हैं । 

-लेखन कब शुरू किया ?
उन्नीस साल की उम्र में । इलाहाबाद के समाचार पत्र ‘अमृत प्रभात’ में  पहला लेख अनुशासनहीनता की जड़ें कहां है’ प्रकाशित हुआ । फिर आकाशवाणी की ओर भी मुड़ी । ड्रामा ऑडिशन क्लीयर किया और रेडियो नाटक किये । 
-अमृत प्रभात से आगे कहां कहां ?
-जनसत्ता , सारिका , नवभारत टाइम्स , दैनिक जागरण ,कादम्बिनी, वामा , गगनाचंल, इन्द्रप्रस्थ भारती, बहुवचन जैसी अनेक पत्र -पत्रिकाओं में लेखन। साहित्यिक पत्रिका ‘साहित्य अमृत’ की संयुक्त संपादक रही । इस पत्रिका के संपादक थे पं विद्यानिवास मिश्र । इसी पत्रिका में स्तम्भ लिखा- हिंदी के निर्माता ! जिसे बाद में भारतीय ज्ञानपीठ ने प्रकाशित किया जिसके चार संस्करण आ चुके हैं । दिल्ली में 1987 से दूरदर्शन से जुड़ी । पत्रिका, कला परिक्रमा , मेरी बात जैसे  कार्यक्रमों की प्रस्तुति ही । फिर प्रसार भारती बोर्ड के अन्तर्गत लिटरेरी कोर कमेटी की सदस्य के रुप में साहित्यिक कृतियों पर बनी फ़िल्मों के निर्माण से  जुड़ी । 
-आप प्रसिद्ध कथाकार अमरकांत की बहू हैं । क्या स्मृतियां हैं आपकी ?
-बहुत कुछ सीखने लायक़ था उनके व्यक्तित्व में। बाबू जी  स्थितप्रज्ञ व्यक्ति थे। किसी के लिए भी कोई दुर्भावना नहीं । किसी से ईर्ष्या द्वेष नहीं । सुख दुख में सम भाव से जीने वाले । लेखन उनकी प्राथमिकता थी । भौतिक संसाधनों को लेकर कोई महत्वाकांक्षा नहीं । मैंने जीवन में उन्हें कभी भी क्रोध करते हुए नहीं देखा ।
-परिवार के बारे में बताइए ।
-दो बेटे हैं- बड़ा बेटा अमेरिका में माइक्रोसॉफ्ट कम्पनी में डायरेक्टर है। बहू बैंक ऑफ अमेरिका में है। दूसरा बेटा फिल्म जगत में । पति अरूण वर्धन ‘टाइम्स ऑफ  इन्डिया’  के ‘नवभारत टाइम्स’ अख़बार में विशेष संवाददाता थे। कोरोना की दूसरी लहर में सन् 2021 में हमने उन्हें खो दिया । 
-साहित्य अकादमी से नाता ?
-पहले कार्यक्रमों में व्याख्यान देने के लिये जाती थी । साहित्य अकादमी द्वारा पंडित विद्यानिवास मिश्र पर बनी फिल्म लिखी । साहित्य अकादमी की भारतीय साहित्य के निर्माता श्रंखला के अन्तर्गत अम्बिका प्रसाद वाजपेयी पर पुस्तक लिखी । यहॉं से निकलनेवाली पत्रिका में भी लिखा ।
-पहले भी कोई चुनाव लड़ा आपने साहित्य अकादमी का ?
-पहली बार ही चुनाव लड़ा और उपाध्यक्ष चुनी गयी ।
-कितनी किताबें हैं आपकी ?
-तेरह किताबें हैं । आलोचना , स्त्री विमर्श और मीडिया पर केंद्रित ।
-उल्लेखनीय सम्मान /पुरस्कार ?
-केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्रालय से दो बार भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार । पहला 'स्त्री घोष' कृति पर । दूसरा समाचार बाज़ार की नैतिकता पुस्तक पर । उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से ‘साहित्य भूषण’ सम्मान। दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन से साहित्य श्री सम्मान। बाबू बालमुकुंद गुप्त सम्मान। इनके अतिरिक्त अनेक सम्मान/पुरस्कार ।
-उपाध्यक्ष बन कर क्या करने का सपना ?
अपने देश के साथ विविध भारतीय भाषाओं के रचनाकारों के भावों का रिश्ता एक जैसा ही रहा । आज भी सामजिक , मानवीय और राष्ट्रीय सरोकारों को अपनी रचनाधर्मिता का अभिन्न हिस्सा मानने वाले विविध भारतीय भाषाओं के रचनाकारों की चिँताए एक जैसी है , उनके सरोकार एक जैसे हैं । उनकी निष्ठाएँ एक जैसी हैं। भाषा के ज़रिए मनुष्यत्व को बचा लेने की ज़िद भी एक जैसी है । भाषा और साहित्य दोनों का प्रयोजन सबको एक स्वस्थ साझेदारी के लिए तैयार करना होना चाहिए । साहित्य अकादमी का प्रयास रहेगा सभी भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों की सोच में सांस्कृतिक साझेदारी की उत्कंठा बनी रहे। सभी भारतीय भारतीय भाषाओं के बीच समन्वय स्थापित करने की कोशिश ।
-क्या सपने है साहित्य अकादमी को लेकर ?
-साहित्य अकादमी अपने कार्यक्रमों को लेकर देश भर के छोटे-छोटे शहरों और गॉंवों तक जायेगी। 
हमारी शुभकामनाएं प्रो. कुमुद शर्मा को !