इंद्रधनुष कविता का (पुस्तक समीक्षा)
-कमलेश भारतीय
आशमा कौल बेशक जम्मू कश्मीर से हैं लेकिन विस्थापन का दुख सकतीं हरियाणा के फरीदाबाद में रहती हैं और इन्होंने बड़े उत्साहपूर्वक एक बृहद कविता संग्रह संकलित किया, जिसमें मेरे जैसे अकवि सहित एक सौ चौंतीस कवि शामिल किये हैं । यह बहुत बड़ी बात है और संपादिका का धैर्य और विशाल सम्पर्क की ओर संकेत करता है । इसकी मुख्य भूमिका साहित्य अकादमी से पुरस्कृत व चर्चित कवयित्री अनामिका ने लिखी है, जो बहुत ही गहरी बात लिखती हैं कि ये कवितायें हैं जो जीवन के एक मुश्किल दौर में मेरे साथ रहीं और होलिका के अदृश्य दुशाले की तरह भीषण लपटों में भी उदाग्र बैठे रहने की निश्चिंतता मुझे दे गयीं । कवितायें भी एक अजीब सा सुरक्षा कवच होती हैं -नये सिरे से यह बात मेरे आगे रेखांकित हुई । फिर आगे वे जैसे चेतावनी सी देतीं कहती हैं कि झंडे ले कर चलना अच्छी बात है पर कविता में हम झंडे उठाते हैं, कभी कभी ऐसा भी होता है कि आंधियां झंडा तो उड़ा ले जाती हैं और हाथ में रह जाता है केवल डंडा, जो कम से कम कविता के स्वास्थ्य के लिए तो ठीक नहीं ही है ।
इतनी गहरी बात के बाद मेरी राय में खुद आशमा कौल को ही अपनी बात लिखनी चाहिए थी न कि अन्य रचनाकारों के आशीर्वचन जुटाने की आवश्यकता रह गयी थी पर अपना अपना विचार है ।
अब आते हैं एक सौ चौंतीस कवियों की ओर । जैसा मैंने पहले भी कहा कि यह हिम्मत और धैर्य है आशमा कौल का कि देश विदेश से इतने कवियों से सम्पर्क कर इतना बृहद काव्य संकलन स़पादित कर लिया, यह माउंट एवरेस्ट चढ़ने से कम दुष्कर कार्य से किसी तरह भी कम नहीं है । इन कविताओं के विषय विविध हैं और चूंकि संपादिका ने विस्थापन का दर्द झेला है तो इन कविताओं में यह दर्द भी उभरता नज़र आता है, विशेष तौर पर जो जम्मू कश्मीर के कवि इसमें शामिल किये गये हैं, उनकी रचनायें इसका प्रमाण हैं । कुछ कवियों ने आम चर्चा के विषयों जैसे पर्यावरण, जल संरक्षण, बेटी बचाओ, प्रेम, प्यार, रक्तदान, मोहब्बत के गीत व ग़ज़लें भी लिखी हैं और कुछ ने तो मां और बेटियों को भी समर्पित की हैं । कुछ ने दोहे, कुंडलियां, लावणी छंदों में भी रचनायें दी हैं यानी हिंदी के नये रूप के साथ पुराने छंद भी पढ़ने सीखने को मिल जाते हैं । इनमें कुछ ग़ज़लें निश्चित तौर पर संग्रहनीय हैं और कुछ याद रहने वाली हैं लेकिन भजन टाइप कविताओं के संकलन से थोड़ा संकोच करना चाहिए था, ऐसा मुझे लगा । हां, चूंकि आशमा कौल फरीदाबाद रहती हैं तो मुझे क्रम की सूची देख यह भी लगा कि आशमा ने शायद फरीदाबाद के किसी कवि/ कवयित्री को उलाहने लायक नही छोड़ा। हिम्मत करके सबकी कवितायें जुटा लीं । यह बड़ी बात है और आशमा अजातशत्रु बन गयी हैं । इनसे कोई नाराज नहीं रहा ।
आशमा ने कुछ वर्गीकरण भी किया जैसे-प्रेरणास्त्रोत, पांचजन्य, प्रतिष्ठित कवि, काव्य प्रणेता। यह इनका अपनी तरह का वर्गीकरण है जो किसी संकलन में देखने को नहीं मिला । नि:संदेह यह कविता का इंद्रधनुष है, यह बहुत साफ है । अनेक रंगों की कवितायें हैं इसमें । कुछ बानगी दे रहा हूं :
प्रतिभा का गुणगान भाषणों की शोभा तक सीमित है
सभी उपेक्षायें पी जाओ जो तुमने हर बार सहीं!
-बाल स्वरूप राही
तुम तस्वीर नहीं हो सकते अवध
तुम हो मेरे चेतन की सुनहरी उजास
रात सिरहाने टिमटिमाता
सितारों भरा आकाश !
-चित्रा मुद्गल
चमक रहा है अंधेरों में
'जियो' कम्पनी का सिम
'जियो मां ' के नाम से सेव किया गया !
-अनामिका
नहीं होता सप्ताह भर में उसके लिए
कोई अवकाश
चिंदी चिंदी जीती है
मार लेती है भीतर का
हर अहसास!
-सुदर्शन रत्नाकर
अपने घर की मुंडेर पर
नित्य आने वाले दो मेहमानों का
स्वागत् का प्रबंध
सुबह उठते ही करती हूं मैं !
फिर दरवाजे की ओट से
छिप कर देखती हूं
उन दो परिंदों को!
-आशमा कौल
मैं जब भी अकेले होता हूं
कभी भी
अकेला नहीं होता हूं!
-उपेंद्र रैना
प्यार की घनी छांव हैं ये बेटियां
भर देती हैं ज़िंदगी के अभाव ये बेटियां!
-उर्मि कृष्ण
आवेदन लिखे हैं हमने, हस्ताक्षर तुम्हारे हैं
बनाये शब्द हैं हमने, मगर अक्षर तुम्हारे हैं!
-कमलेश मलिक
इतनी बुरी नहीं है दुनिया जितनी निंदा होती है
औरों के सुख दुःख में देखा यह भी हंसती रोती है
-पुष्पा राही
बहुत गा चुके हैं मृत्यु को
आओ जीवन गायें हम
-रश्मि बजाज
अनेक उदाहरण दे सकता हूं लेकिन यह आशमा का श्रम व्यर्थ नहीं जायेगा। यह काव्य संकलन सहेज कर रखने लायक है। बस, थोड़ा चयन में जयादा सतर्क रहने की जरूरत थी क्योंकि संपादन किसी को संतुष्ट करना नहीं, श्रेष्ठ चयन करना है। कहा सुना माफ आशमा ।
Kamlesh Bhartiya 

