ग़ज़ल / अश्विनी जेतली 

ग़ज़ल / अश्विनी जेतली 
अश्विनी जेतली।

इक शमां बुझने से पहले, टिमटिमायी थी बहुत
दम तोड़ने से पहले हसरत, मुस्कराई थी बहुत

शाख से उड़ते ही उसको, बाज़ ने झपट लिया 
शाख पर बैठी जो चिड़िया, चहचहायी थी बहुत

हक अपने लेने की खातिर, टूट पड़े महलों पर जो 
देख के उन मज़लूमों को रानी, तिलमिलायी थी बहुत

बुलंद मलाह का हौसला था, जिसने लहरें मोड़ दीं 
बीच भंवर में यूँ तो कश्ती, डगमगायी थी बहुत

जब हथेली पर सिर देखा, तो मौत भी सकते में थी
हौसलों को देख वो भी, हबडायी थी बहुत