समाज में थोड़ा सा भी बदलाव ला सकूं तो जीवन सफल मानूंगी: मनीषा हंस 

समाज में थोड़ा सा भी बदलाव ला सकूं तो जीवन सफल मानूंगी: मनीषा हंस 
मनीषा हंस।

-कमलेश भारतीय 
यदि मैं अपने सामाजिक सक्रियता से इस समाज में थोड़ा सा भी बदलाव ला सकी तो अपनी विभिन्न संगठनों की सक्रियता को व अपने जीवन को सफल मानूंगी । यह कहना है पहले राज्य संसाधन केंद्र  'सर्च' में बीस साल फैलो रहीं और आजकल हरियाणा ज्ञान-विज्ञान समिति की राज्य कार्यकारिणी सदस्या, भारत ज्ञान विज्ञान समिति हरियाणा की सह सचिव एवं राष्ट्रीय भारत ज्ञान विज्ञान समिति की महिला प्रकोष्ठ की सदस्य तथा जनवादी महिला समिति की कार्यकर्ता मनीषा हंस का। वे मूलतः हिसार के रेलवे रोड  निवासी हंस परिवार (दिल्ली टाइप काॅलेज) से जुड़ीं हैं । ससुराल हिसार में है लेकिन वे रोहतक रहती हैं क्योंकि पति प्रमोद गौरी  वहीं प्राध्यापक हैं ।

-शिक्षा कहां और कितनी ?
-यशोदा स्कूल से मैट्रिक । फिर गवर्नमेंट काॅलेज से बी ए ऑनर्स संस्कृत । यहीं से की एम ए इंग्लिश । बेटे ने जब मैट्रिक की तो  उस समय एम ए हिंदी भी की ।
-स्कूल काॅलेज में कौन सी गतिविधियों में भाग लिया?
-सबसे पहले राज्यकवि उदयभानु हंस की कविता का पाठ स्कूल से करना शुरू किया और लोग यह पूछते कि क्या मैं हंस जी की बेटी हूं । फिर थियेटर की ओर आ गयी ।
-थियेटर में कौन कौन से नाटक ?
-पगड़ी-द ऑनर फिल्म के निर्देशक राजीव भाटिया मेरे सहपाठी थे तो यशपाल शर्मा इसी काॅलेज में सीनियर । राजीव भाटिया के साथ किया कुमारस्वामी, जिसमें एक्टिंग के आधार पर हम दोनों यूथ फेस्टिवल में श्रेष्ठ अभिनेता और अभिनेत्री रहे और रुड़की में हमारा यह नाटक राष्ट्रीय स्तर पर 'वन ऑफ़ द बेस्ट फोर' रहा । दूसरे वर्ष खड़िया का घेरा में भूमिका की और फिर श्रेष्ठ अभिनेत्री रही । यशपाल शर्मा के साथ किया था मातादीन चांद पर, यह याद है मुझे । ज्ञान विज्ञान समिति में भी नुक्कड़ नाटक करने का मौका मिला।
-और क्या मिला काॅलेज से ? 
-मैं थियेटर के अलावा काव्य पाठ , हरियाणवी स्किट, समूह गान, श्लोकोच्चारण आदि में भाग लेती थी इसलिए मिला रोल ऑफ ऑनर ।
एक साल कॉलेज की पत्रिका भोर का तारा की छात्र संपादक भी रही और एक वर्ष छात्र संघ में उपाध्यक्ष भी रही। 
-प्रिय अभिनेता/अभिनेत्री कौन ?
-समांतर सिनेमा से बहुत प्रभावित हुई । वैसे एन एस डी जाना चाहती थी लेकिन पिता जी के निधन से यह सपना अधूरा रह गया।  समानांतर सिनेमा के ओम पुरी , नसीरुद्दीन शाह   , शबाना आज़मी व स्मिता पाटिल आदि बहुत अच्छे लगते थे । फिर इरफान से भी प्रभावित हुई ।
-फिल्मों में काम किया?
-राजीव भाटिया निर्देशित पगड़ी-द ऑनर में हीरोइन की मां का रोल । सुपवा , रोहतक के छात्रों से जुड़ी हूं और नौ शाॅर्ट फ़िल्मों में एक्टिंग कर चुकी हूं । सबसे ज्यादा पारो शाॅर्ट फिल्म चर्चित रही ।
-सर्च में क्या क्या किया ?
-सर्च यानी राज्य संसाधन केंद्र में रही बीस साल फैलो रही। यहां रहकर साक्षरता अभियान में चल रही सामाजिक बदलाव की प्रक्रियाओं को समझने का अवसर मिला। महिला सशक्तीकरण का विचार मन में घर कर गया। हरकारा पत्रिका के संपादन से जुड़ी थी । इसके अतिरिक्त सर्च में प्रकाशन के कार्य से जुड़ी रही वहां हमने लगभग डेढ़ सौ किताबें प्रकाशित की ।
-किन किन से प्रभावित रहीं ?
-अपनी मां सुनीता हंस से जो तलवंडी राणा से प्रिंसिपल रिटायर हुई हैं और नाना जी से साहित्य पढ़ने के संस्कार मिले । घर में मायके में भी छोटा सा पुस्तकालय रहा और यहां भी गौरी जी का पुस्तकालय बहुत सी पुस्तकें पढ़ने का अवसर देता है । मेरी टीचर यशोदा माथुर , रामप्यारी, काॅलेज में मोदीराम जी , गुगनराम गोदारा , के आर सेठी, विजय शर्मा सर के अध्यापन ने छाप छोड़ी । रोहतक में डॉ. सूरजभान , मनमोहन और शुभा दी से बहुत सीखने को मिला । 
- ज़िंदगी अपनी कब बदली सी लगी ?
-सन् 1999 में हरियाणा ज्ञान विज्ञान समिति के नवजागरण जत्थे में पति प्रमोद गौरी के साथ एक माह हरियाणा के गांवों में गयी तब अपनी ही सोच व जिंदगी बदल ही गयी और जीने का जैसे मकसद मिल गया । मेरा ही कायकल्प हो गया । ज्ञान विज्ञान आंदोलन ने एक वैकल्पिक दृष्टि दी।
-अब लक्ष्य ?
-चाहे कला या सामाजिक कार्य, किसी भी रूप में अगर समाज को थोड़ा सा भी बदल पाने में सफल हुई तो अपना जीवन सार्थक मानूंगी । एक सामाजिक कार्यकर्त्ता या एक्टीविस्ट ।
हमारी शुभकामनाएं मनीषा हंस को ।