जंगल पहले ही कम हैं ऊपर से आग लग जाती है

ऐसे ही गर्म दिन थे जब मैं हिमाचल प्रदेश में ठंडक भरे दो-चार दिन बिताने के लिए निकला था। करीब तीन साल पहले की बात है। कालका और परवाणु से आगे बढ़ने के बाद पहाड़ियों पर आग के गुबार निकलते दिखाई दिए। वृक्षों के तने जल रहे थे और दमघोंटू धुआं हवा में घुल रहा था।

जंगल पहले ही कम हैं ऊपर से आग लग जाती है

ऐसे ही गर्म दिन थे जब मैं हिमाचल प्रदेश में ठंडक भरे दो-चार दिन बिताने के लिए निकला था। करीब तीन साल पहले की बात है। कालका और परवाणु से आगे बढ़ने के बाद पहाड़ियों पर आग के गुबार निकलते दिखाई दिए। वृक्षों के तने जल रहे थे और दमघोंटू धुआं हवा में घुल रहा था। जिस हसरत से पहाड़ की तरफ चला था, सब ठंडी पड़ गई। दुख हुआ पूरे रास्ते में जगह जगह वनों में आग लगी देखकर। गर्मियों में तापमान बढ़ने के साथ वनों में आग लगने की खबरें आने लगती हैं। इस बार फिर, हिमाचल के पहाड़ों पर कई जगह जंगल सुलग रहे हैं। उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल मंडल के जंगलों में भी आग लगी हुई है। प्रदेश में 124 स्थानों पर आग की घटनाओं की जानकारी मिली है। इससे पहले राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिजर्व, उड़ीसा की सिमिलीपाल वाइल्डलाइफ सेंक्चुअरी, मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में लडकुई जंगल और तमिलनाडु की कोडाइकनाल हिल्स के आसपास आग लग चुकी है। इस साल वनों में आग लगने की कुल 1216 घटनाएं हुई हैं, जिनसे करीब 30 लाख रुपए की वन संपत्ति के नुकसान का अनुमान है।

जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक असर मौसम पर पड़ता है। इससे दुनिया भर में जीवन और अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभाव पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट कहती है कि आने वाले कुछ साल विश्व के लिए परेशानी वाले साबित होंगे। दुनिया में हर साल 560 प्राकृतिक आपदाओं की आशंका है, जबकि 2015 तक यह संख्या सालाना करीब 400 थी। इससे पहले के आंकड़े देखें तो 1970 से 2000 के बीच, हर साल औसतन करीब 100 आपदाएं ही आती थीं। आगामी समय में ज्यादा संख्या वनों की आग और बाढ़ जैसी आपदाओं की होगी। इनके अलावा महामारी और रासायनिक दुर्घटनाएं भी होंगी। भारत का करीब 22 फीसदी फॉरेस्ट कवर आग लगने के लिहाज से बेहद संवेनशील है। विशेषज्ञों का कहना है कि जंगल की आग को दो ही चीजें चाहिए, एक तो ईंधन और दूसरा चिनगारी। ईंधन मिलता रहे तो आग लगातार लगी रहती है। चीड़ की नुकीली पत्तियां आग में ईंधन का काम करती हैं। इसलिए चीड़ के वनों से खतरा अधिक है। जमीन पर पड़े सूखे पत्ते और टहनियां भी ईंधन का काम करती हैं। रही बात चिनगारी की तो उसके लिए 75 फीसदी घटनाओं के लिए मानवीय गतिविधियां जिम्मेदार होती हैं। वनों की आग रोकने के लिए ज्यादा काम होना चाहिए और इन्हें कम करने के उपाय किए जाने चाहिए।

जैसे आग फैलती है वैसे ही दिमाग में विचार कौंधते हैं। कनाडा की क्वींस यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि व्यक्ति के दिमाग में हर दिन 6,000 विचार आते हैं, जिनमें 80 फीसदी विचार नकारात्मक होते हैं। इनसे व्यक्ति की दिनचर्या पर विपरीत असर पड़ता है और मानसिक तनाव पैदा होता है। इस स्थिति से बचने के लिए प्रतिदिन यदि चार-पांच मिनट मेडिटेशन कर लिया जाए तो नुकसान को रोका जा सकता है। दिमाग में आने वाले विचारों की सफाई और व्यवस्था वैसे ही जरूरी होती है, जैसी कि हम घर की चीजों की करते हैं। दिमाग में मौजूद पुरानी गैरजरूरी यादों और विचारों को यदि कागज पर लिख लिया जाए तो इनसे छुटकारा मिल सकता है और दिमाग शांत रह सकता है। नकारात्मक विचारों से छुटकारा पाने के बाद दिमाग की क्रियाशीलता बढ़ जाती है और रचनात्मक विचारों को जगह मिलती है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व कॉलमिस्ट हैं)