लघुकथा/जंगली जानवर

लघुकथा/जंगली जानवर
मनोज धीमान।

शेर रास्ते से भटक गया। शहर पहुंचा। घनी आबादी थी। काली स्याह रात थी। एक बंगले के बाहर पहरा लगा हुआ था। गेट बंद था। शेर दीवार फांद कर बंगले के भीतर चला गया। कमरों से होता हुआ बैडरूम में पहुंचा। दरवाज़ा थोड़ा खुला था। भीतर झांका। अंदर का दृश्य देख कर वह बुरी तरह से सहम गया। कमरे के भीतर उससे भी बड़ा एक शिकारी था- खूंखार, दरिंदा, वहशी। शिकारी अपने शिकार को नुकीले पंजों से नोच नोच कर कच्चा चबा रहा था। उस दरिंदे, वहशी शिकारी का पूरा शरीर उसके शिकार के ख़ून से सना पड़ा था। यह दृश्य देख कर शेर भयभीत हो गया। शेर पीछे की ओर मुड़ा और जंगल की तरफ वापस भाग निकला।
अगले दिन शहर में जोरदार चर्चा थी। मंत्री जी के बंगले पर रात को एक खूंखार शेर देखा गया।

-मनोज धीमान।