कमलेश भारतीय द्वारा जिंदगी के आसपास लिखी गई लघुकथाएं  

कमलेश भारतीय द्वारा जिंदगी के आसपास लिखी गई लघुकथाएं  
कमलेश भारतीय।

पासपोर्ट 
मां का निधन और बडे बेटे के नाते सारे क्रिया-कर्म मेरे जिम्मे। हरिद्वार अस्थियां लेकर चला और कनखल पहुंच एक पंडित जी के निर्देशन में कुछ मंत्रोच्चारण के बीच गंगा में विसर्जित कीं । बाद में हरिद्वार पुश्तैनी पंडित के यहां पहुंचा । कुशा घाट पर । पंडित जी यह सुनते ही आग बबूला हो गये कि कनखल में क्रिया-कर्म करने के बाद आया हूं । उन्होंने कहा कि वह पूजा लगेगी ही नहीं । 
उस उदास माहौल में भी मेरी हंसी छूटने वाली थी पर रोकी । बस , इतना ही कहा -क्या गलत पासपोर्ट बन गया स्वर्ग का ? 
अब वे मेरा मुंह देख रहे थे । बोले -यजमान,  यह मैं नहीं जानता ।


माफी 
हम रोज चिड़ियों के लिए घर की बाहरी दीवार पर दाना डालते । चिडियां भी सुबह सवेरे चहचहाना शुरू कर देतीं । मानो अपना दाना मांग रही हों । हम सबसे पहले उन्हें दाना बिखेरते । फिर दिनचर्या शुरू करते । 
एक दिन दोपहर को देखा कि दीवार के नीचे किसी चिड़िया का पंख पड़ा है । यह समझते देर न लगी कि किसी बिल्ली ने उसे अपना शिकार बना डाला है । चिड़ियां भी चहचहाने की बजाय चीख रही थीं । फिर कई दिन नहीं आईं । उन्हें लगा कि हमने ही यह धोखा किया है । 
हम फिर भी दाना बिखेरते रहे । एक आस में । 
आखिर एक सुबह चिड़ियां घर की चारदीवारी पर चहचहाने लगीं । 
हमें लगा कि चिड़ियों ने हमें माफ कर दिया ।

 

रिश्ते
छोटे छोटे सिक्के मेरी जेब में इकट्ठे होते रहते । कभी भारी सी लगने लगती जेब । पर सोचता कि पडे रहें । क्या फर्क पडता है । एक दिन ऑटो से उतरा । बडे नोट शर्ट चेंज करते समय डालना भूल गया । इससे पहले कि शर्मिंदा हो जाऊं । सिक्के मेरी जेब में खनक उठे । वाह । ऑटो के पैसे देकर भी बचे हुए थे । 
सच , कुछ रिश्ते ऐसे ही साथ साथ चलते रहते हैं और वक्त पडने पर जहां बडे रिश्तेदार व मित्र काम नहीं आते । ये एकदम से खनकते चहकते हमारे पास आ जाते हैं और दुख के दिनों में बहुत साथ देते हैं । अजब पहेली हैं रिश्ते और अजब गजब दास्तान है इनकी ।....

 

ख्याल
ख्याल कब आ जाए , कह नहीं सकते । रोज सुबह किचन का कूड़ा घर आने वाली स्वीपर को डालते हैं । एक दिन छुट्टी कर जाए तो कोफ्त हो उठती है । अचानक ख्याल आया कि ऐसे ही अपने मन में रोज किसी के प्रति गुस्सा,  अपमान,  ईर्ष्या जमा करते रहते हैं....यह कूड़ा कब खाली करोगे ? ख्याल हैं....आपका क्या ख्याल हैं ?

 

मोबाइल
मैं दूर परदेस में था । छोटे भाई का फोन आया । मां नहीं रही । दूसरी सुबह मुंह अंधेरे टैक्सी से चला और सही समय पर पहुच गया । तब तक मां की अंतिम यात्रा की सारी तैयारी हो चुकी थी । बस । मुंह हाथ धोया और कंधा देकर चला ही था कि जेब में रखे फोन की घंटी बज उठी । ओह । अंतिम यात्रा तक यह मोबाइल भी ....तुरंत स्विच ऑफ किया । सब मेरी ओर देखते रहे ....