हिंदी दिवस को श्राद्ध से न जोड़ा जाए : डाॅ मधुसूदन पाटिल 

हिंदी दिवस को श्राद्ध से न जोड़ा जाए : डाॅ मधुसूदन पाटिल 
डाॅ मधुसूदन पाटिल ।  

-कमलेश भारतीय 

हिंदी दिवस को श्राद्ध पक्ष से न जोड़ा जाए । शरद जोशी ने लिखा था कि श्राद्ध के दिनों में कौए को याद किया जाता है । ऐसे ही हिंदी दिवस पर हिंदी वालों को याद न किया जाए । हम वर्ष भर और दिवस भी मनाते हैं । हिंदी दिवस अलग है । इसका महत्त्व अलग है । यह कहना है जाट काॅलेज के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष व प्रसिद्ध व्यंग्यकार डाॅ मधुसूदन पाटिल का । आज हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में डाॅ पाटिल से विशेष बातचीत की गयी । महाराष्ट्र के अमरावती के पास गांव के मूल निवासी डाॅ पाटिल ने मैट्रिक तक वहीं शिक्षा पाई फिर हरियाणा के गुरुग्राम आ गये और यहां स्नातक और एमडीयू , रोहतक से नियमित तौर पर एम ए हिंदी के बाद मेरठ से डाॅ कुंवर बेचैन के निर्देशन में पीएच डी की । अनेक जगह प्राध्यापन के बाद आखिर जाट काॅलेज , हिसार में हिंदी विभाग के अध्यक्ष के रूप मे सन् 2000 में सेवानिवृत हुए और स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं । नभछोर में भी स्तम्भ लेखन किया । 

-हरियाणा में हिंदी की स्थिति पर क्या कहेंगे ?
-हिंदी हरियाणा की राजभाषा है । हिंदी का महत्त्व किसी तरह भी कम नहीं । फिर भी क्षेत्रीय बोली या कहें कि हरियाणवी में नये लोग लेखन कर रहे हैं । वे हिंदी की अपेक्षा अपनी बोली में लेखन कर सहज महसूस करते हैं । हरियाणा में हिंदी को आमतौर पर उत्तर प्रदेश और बिहार की भाषा मान कर इतिश्री कर लेते है ।  
-हरियाणा में संभवतः सर्वाधिक पांच अकादमियों कार्यरत हैं । हरियाणा साहित्य अकादमी खासतौर पर हिंदी के लिए काम करती है । कैसा काम हो रहा है ग्रंथ व साहित्य अकादमी की ओर से ?
-सभी का योगदान अच्छा है । ये साहित्य को प्रोत्साहित करती हैं । नये रचनाकारों को पुस्तक प्रकाशन के लिए अनुदान देती हैं । साहित्यिक गतिविधियां चलाती हैं । पुरस्कार देती हैं । 
-क्या आपको किसी अकादमी ने पुरस्कार दिया ?
एकदम डाॅ पाटिल का व्यंग्यकार आ गया और कहने लगे कि कभी कोशिश ही नहीं की । 
-क्यों ?
-देखिए मित्रवर ऊपर से नीचे तक दंडवत नहीं हो सकता । सभी देवी देवताओं को पूजना मेरे बस की बात नहीं । इस तरह वे बहुत बड़ी बात की ओर संकेत कर गये ।
-फिर आपको कौन सा पुरस्कार मिला ?
-नजीबाबाद में माता कुसुमकुमारी अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार । यह प्रदान किया जो आजकल नया ज्ञानोदय के संपादक है मधुसूदन आनंद व विद्यानिवास मिश्र ने । 
-आपने व्यंग्य लेखन को ही क्यों चुना ?
-मराठी मानस विनोदप्रियता को जानता है जैसे हरियाणा के ग्रामीण लोग ठेठ व्यंग्य को जानते हैं । इनका कोई तोड़ नहीं होता । वैसे आलोचना के क्षेत्र में भी सक्रिय रहा । 
-कितने व्यंग्य संग्रह?
-सात और दो आलोचना पुस्तकें । 
-पत्रिका व्यंग्य विविध कितने वर्ष तक चलाई ?
-दस वर्ष तक । 
-हरियाणा में व्यंग्य की क्या स्थिति?
-मैंने पीएचडी करवाई -हरियाणा में व्यंग्य साहित्य । नये रचनाकार भी सक्रिय हैं । 

हमारी शुभकामनाएं डाॅ मधुसूदन पाटिल को ।