हरियाणा की माटी से : हरकी पौड़ी, हरिद्वार से 

हरियाणा की माटी से : हरकी पौड़ी, हरिद्वार से 
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
पहली बार आया था हरिद्वार दादी के साथ जब दादा जी नहीं रहे थे । तब पांचवीं में पढ़ता था । पूरे दस दिन रहे थे हरिद्वार । सब देखा था । एक एक मंदिर । फिर आया पिता की स्मृति में पूजा पाठ करवाने ! तब नौवीं में था सन् 1965 के दिसम्बर माह की बात । तीन दिसम्बर को निधन हुआ और चौदह दिसम्बर को मैं हरिद्वार आया ! अब कुशा घाट के हमारे पंडित युवा शिवांग वह पन्ना निकाल कर दिखा रहे हैं । मैं जयराम के साथ आया था और कमलेश कुमार के तौर पर नाम लिखा । इसी तीन दिसम्बर को सन् 1972 में ही प्रिय कथाकार मोहन राकेश का भी निधन हुआ । अब तीन दिसम्बर को हर साल दोनों एक साथ याद आते हैं ! उसके बाद सन् 1967 में जब दादी भी विदा हो गयीं । तब भी जयराम के साथ आया । सारा दारोमदार मेरे ऊपर ही आ गया । फिर आया सन् 1982 जुलाई में जब मेरे ससुर सतपाल खोसला यहां सप्त ऋषि क्षेत्र में अंध महाविद्यालय में प्रबंधक लगे थे । दोनों बेटियां छोटी छोटी थीं । एक कंधे पर तो दूसरी गोदी ! खूब मस्ती की थी । शायद वही पहला अवसर था जब खुशी खुशी हरिद्वार आया । इसके बाद फिर सन् 2004 में आया जब मां ने भी साथ छोड़ दिया था । तब वाले पन्ने पर दुम्मण सैनी जिसका नाम अवतार लिखा है , वह आया था मेरे साथ फूल विसर्जित करने ! जब जब बहुत व्यथित होकर आया तब तब गंगा के शीतल जल ने जैसे एक थपकी सी दी कि जीना इसी का नाम है और जिओ जी भर के ! तब से जी रहा हूं खुश खुश जैसा भी दिन हो !
अब इतने सालों बाद सन् 2023 में फिर वही खुशी खुशी सपरिवार बच्चों के साथ ! हालांकि बीच में दो बार सन् 1985 व सन् 1986 में भी आया जब सुपर ब्लेज के संपादक राजकुमार कपूर ने आमंत्रित किया । देहरादून बुलाया । तब एक एक दिन उनकी गाड़ी में उनकी बेटियों  के साथ हरिद्वार भी आया था । एक एक दिन की फेरी और गंगा में डुबकी । यही नहीं दोनों साल पुरोला तक गया जहां राजकुमार कपूर एक्सईएन सिंचाई के रूप में कार्यरत थे । पुरोला वह कस्बा है जहां से यमुनोत्री और गंगोत्री के रास्ते फूटते हैं । राजकुमार कपूर कहते रहे कि जा आओ गंगोत्री लेकिन मैं हिम्मत न कर पाया क्योंकि बहुत गहरी खाइयां थीं । पुरोला में ही कमल नदी के किनारे उनका प्यारा सा सरकारी आवास था । वहीं मैंने एक सप्ताह रहकर अपना लघु उपन्यास पूरा किया 'विरासत' जो सुपर ब्लेज में ही प्रकाशित हुआ और मेरे कथा संग्रह मां और मिट्टी में भी प्रकाशित है । अब बहुत खोज रहा हूं लेकिन राजकुमार कपूर का कुछ अता पता नहीं ! पूरे दस साल सुपर ब्लेज का सौजन्य संपादक रहा यानी अवैतनिक पर खूब खुले अवसर मिले लिखने के ! स्तम्भ लेखन भी किया । बंधु कुशावर्ती भी नहीं बता पाये राजकुमार कपूर का कोई अता पता ! 
आज फिर हरिद्वार बच्चों के साथ । तीसरी पीढ़ी आई है । दोनों बेटियां रश्मि व प्राची । पत्नी नीलम भी खुश है कि बच्चों के लिये समय निकाला ! प्राची के पति विनय और बेटा लक्ष्य भी । कुशा घाट पर जो हमारे गौत्र का पंडित है वहां भी तीसरी पीढ़ी मौजूद है । पंडित आनंदप्रकाश का पोता शिवांग मौजूद है । मैंने उससे पूछा सन् 2004 में कितने साल के थे ? उसने बताया कि चौदह साल का था ! मैंने बताया तब आपके दादा ने कहा था कि इसकी पढ़ाई के लिये कुछ मदद करते जाइये और मैंने शिक्षक होने के नाते की भी थी । आज फिर से हरिद्वार में हूं । शायद यही भारतीय संस्कृति है जो पीढ़ी दर पीढ़ी पहुंचती है । पहुंच रही है । इस अवसर पर पाठक मंच की सदस्या हर्ष भाटिया ने मदद की इस भीड़ भाड़ में आवास दिलवाने में  ! कल हमारी मुलाकात भी होगी । वे सुबह ऑफिस जाने से पहले मिलने आयेंगीं! चलिये आज की यात्रा संपन्न ! कल फिर सही !
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।