ग़ज़ल / अश्विनी जेतली 

ग़ज़ल / अश्विनी जेतली 
अश्विनी जेतली।

किसी के दिल के दर्द को तू अपना बना के देख
मिलेगा दर्द में भी सकूँ, ये बात आज़मा के देख

अकेले तुम नहीं, लाखों और भी तो ग़म के मारे हैं
कभी ख़ुद से तो बाहर आ, ज़रा नज़रें उठा के देख

पुरानी राख को टटोलना अब छोड़ भी दे 
फिर से इक चिंगारी नयी, सीने में जला के देख

दोबारा जगने से कई बार ये जगमगा भी उठती है
बुझी जो आस थी इक दिन, उसे ही फिर जगा के देख

तेरा आंगन अगर खुशियों से खिल न जाए, तो कहना
मुहब्बत का दीया दहलीज़ पर अपनी जला के देख