कहानी से नाटक में आकर दृष्टिकोण व्यापक हुआ: स्वदेश दीपक 

कहानी से नाटक में आकर दृष्टिकोण व्यापक हुआ: स्वदेश दीपक 
कमलेश भारतीय।

#स्वदेश दीपक से मैंने अम्बाला छावनी उनके घर जाकर इंटरव्यू की थी दैनिक ट्रिब्यून के लिए । तब उपसंपादक की जिम्मेदारी थी । कभी सोचा नहीं था कि इंटरव्यूज पर आधारित कोई पुस्तक बन सकती है । पर एक फाइल सन् 2013 में हाथ लगी अपनी ही तो सारी इंटरव्यूज एक जगह मिलीं । उलट पलट कर देखा तो लगा यह तो एक पुस्तक है -यादों की धरोहर । इस रूप में सामने आई पर तब स्वदेश दीपक का इंटरव्यू नहीं मिला । पुराने समाचार की कटिंग से काम चलाया । अब कोरोना के एकांत और अकेलेपन के दिनों में अचानक बेटी रश्मि के हाथ मेरी सन् 1991की चंडीगढ़ एडमिनिस्ट्रेशन की डायरी लग गयी । पन्ने पलटने पर मैं हैरान । स्वदेश दीपक से इंटरव्यू के सारे नोट्स इसी डायरी में मिले । उनके साथ ही इसी डायरी में अम्बाला के राकेश वत्स और दिल्ली में मोहन राकेश की धर्मपत्नी अनिता राकेश के भी इंटरव्यूज के नोट्स देखे तो मन उस समय में पहुंच गया । जहां राकेश वत्स व अनिता राकेश के इंटरव्यूज मिल गये थे लेकिन स्वदेश दीपक का नहीं ।  तो  सोचा फिर से कल्पना करूं कि मैं स्वदेश दीपक के सामने उनके घर बैठा हूं । अभी अभी गीता भाभी चाय के प्याले रख गयी हैं । ऊषा गांगुली भी कोलकाता से आई हुई हैं जो उनके नाटक कोर्ट मार्शल को मंचित करने की अनुमति मांग रही हैं । बीच में ब्रेक लेकर हमारी इंटरव्यू शुरू हो जाती है । लीजिए : एक बार नयी कोशिश ।
कहानी से नाटक में आकर दृष्टिकोण व्यापक हुआ : स्वदेश दीपक 
-कमलेश भारतीय 

मैंने विधा बदल ली । कथाकार से नाटककार बन गया । इससे मुझे यह अहसास हुआ कि मेरा दृष्टिकोण व्यापक हो गया । सीधे दर्शकों के सम्पर्क में आया ।  नाटक कोर्ट मार्शल ऊषा गांगुली बंगाली में अनुवाद कर मंचित करने जा रही हैं । बातचीत आपके सामने हो रही है । पंजाब से केवल धालीवाल चंडीगढ़ में इसे पंजाबी में मंचित करने जा रहा है । रंजीत कपूर काल कोठरी तो अल्काजी शोभायात्रा का मंचन करेंगे । 
स्वदेश दीपक इस सबसे उत्साहित होकर कहने लगे कि कमलेश , देखो । कहानी प्रकाशित होती है तो दो लेखकों के खत आ गये और हम खुश हो लिए । इससे खुलेपन की ओर ले जा रहे हैं मुझे मेरे नाटक । खुलेपन की ओर यात्रा । 
-नाटक से क्या हो जाता है ?
-सीधा संवाद । विचार तत्त्व । मानवीय मूल्य । कहानी पढ़ने पर हम इतने उत्तेजित नहीं होते जबकि कोर्ट मार्शल को मंचित देख उत्तेजित होते दर्शक देखे हैं । 
-दर्शक अच्छे नाटक का स्वागत् करते हैं ?
-क्यों नहीं ? दर्शक देखते भी हैं और ग्रहण भी करते हैं । नाटकों के माध्यम से पुनर्जागरण होता रहा है । यह कोई नयी बात नहीं । 
-क्या ताकत है नाटक की ?
-सामाजिक व राजनीतिक बुराइयों के खिलाफ लड़ने के लिए लिखे हुए शब्द से बोला हुआ शब्द ज्यादा कारगर साबित हो रहा है । 
-आपमें कथाकार से नाटककार बन कर क्या बदलाव आया ?
-अकेला सा , कटा सा महसूस कर रहा था । जीवन व्यतीत कर रहा था । अब कुछ बढ़िया महसूस कर रहा हूं ।
-नाटकों का संकट क्या है आपकी नज़र में ?
-सबसे बड़ा संकट यह है कि नब्बे प्रतिशत लोग किसी मिथ को लेकर नाटक लिखते हैं । लिखे जा रहे हैं - कबीर , कर्ण , अंधा युग  की परंपरा । मिथ को आधुनिक जीवन के साथ जोड़ कर लिखने के लिए मिथ का उपयोग नहीं किया गया । सामाजिक जीवन की मुश्किलें , राजनीति का हमारे जीवन में बढ़ता दखल , एक ही लाठी से सबको हांकते चले जाते राजनेता । समय आ गया है कि साफ साफ बात कही जाए । आड़ या ओट लेने का समय नहीं । 
-नये नाटक शोभायात्रा के बारे में कुछ बताइए ?
-सन् 1984 से शुरू होता है शोभायात्रा । मिथ में कहता हुआ । राजा रानी की कहानी कह कर । हिंदी में घबराहट पता नहीं क्यों है साफ बात कहने की । जबकि इसे साहसपूर्वक भी कह लिख सकते हैं । मैं पूजा भाव से किसी को नहीं देखता । राजनैतिक सत्यों को छिपा कर कहने का अब कोई अर्थ नहीं रहा । शोभायात्रा -एक प्रकार से है दुखों की यात्रा । मिथ तोड़ने की आवश्यकता है । भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता है जिसमें दूध दही  की नदियां बहती हैं । इस तरह की चुनौतियों को स्वीकार न करना ही सबसे बड़ा संकट है हिंदी में । नाटकों में । गिरीश कार्नाड जैसा आदमी भी मिथ का प्रयोग करता है । 
-आप मिथ के विरोधी हैं ?
-नहीं । मैं मिथ का विरोधी नहीं । मिथ को जीवन में उतार पाएं तो । नहीं तो नहीं कहें । बस । मशीनी मार्का लेखन की जरूरत क्या है ? राजनीति जब लेखन पर हाॅवी हो जाती है तब लेखक की दृष्टि संकरी गली में चली जाती है । राजनीतिक विचारधारा को जब आरोपित कर देते हैं तब लेखन मशीनी होने लगता है ।
-आपकी कहानियां मनोविज्ञान को जोड़  कर चलती हैं । कैसे ?
-मनोविज्ञान जीवन से ही निकला है । विचार तत्त्व भूख से नहीं जुड़ा हुआ । धर्म के नाम पर लोगों को मारा जा रहा है । विदेशों को बेचने की तैयारी है । राजनीति से सेंकने की कोशिश जारी है । इसलिए ये खतरे हैं । बहुराष्ट्रीय कंपनियां हैं जो हमारे जनजीवन को बुरी तब तरह प्रभावित करने लगी हैं । सब्जबाग दिखा रही हैं युवाओं को । हिंदुस्तान में ऐसे नहीं चल सकता । लेखक के लिए ये सारे उपकरण उपयोगी हैं । तब जाकर साहित्य बनता है कमलेश भाई । 
-क्या कहानी में ताकत नहीं रही पाठक को झिंझोड़ कर रख देने की ?
-कहानी की ताकत से इंकार नहीं । साप्ताहिक हिंदुस्तान में प्रकाशित मेरी अपाहिज कहानी पर भी खूब चर्चा मिली । पर नाटक की बात कुछ और है । खेला जाए तभी महत्त्वपूर्ण बनता है । दर्शक से जुड़ना नाटक से ही संभव हुआ । 
-साहित्यिक उत्सवों में आप दिखाई नहीं देते । अपने ही नाटक के मंचन को दर्शकों से छुप कर देखते हैं । क्यों?
-साहित्यिक उत्सवों में जाना समय नष्ट करना है । कोई नयी बात नहीं होती । साहित्यिक पंडे नयी बात नहीं बताते । रास्ता नहीं दिखाते युवा लेखकों को । 
-युवा लेखकों को कोई मंत्र ?
-साहित्य में किसी की सीढ़ी पकड़ कर चलने वाला जल्दी लुढक जाता है । आलोचकों को खुश करने में विश्वास न रखें । विचारधारा लेखक को सौंपी जा रही है । जो साहित्य किसी विशेष विचारधारा के लिए लिखा जायेगा वह अपनी मौत मारा जायेगा । साहित्यिक मूल्यांकन तो दर्शक या पाठक ही करेगा ।
-टेली फिल्मों का अनुभव ?
-सुरेन्द्र शर्मा ने तमाशा कहानी पर टेली फिल्म बनाई । महामारी और तुम कब आओगे पर टेली फिल्में बनीं । नम्बर 57 स्क्वाड्रन पर आकाश योद्धा  स्वीकृत हो गया है । प्राइम टाइम के लिए । धीमान निर्देशित करेंगे । 
स्मरण रहे कि वायुसेना में भी एक समय स्वदेश दीपक कार्यरत रहे । बाद में अंग्रेजी प्राध्यापक बने ।
-किसने प्ररित किया नाटकों की ओर?
-अम्बाला के एम आर धीमान निर्देशक ने । उन्होंने कहा कि मैं कहानियां ही नहीं , नाटक लिख सकता हूं । नाटक की तकनीकी बारीकियां समझाईं । पहला नाटक इन धीमान को ही समर्पित । नाटककार बनने की प्रेरणा धीमान ने ही दी । 
-कोई और अनुभव जो नये रचनाकारों को देना चाहें ।
-लेखन में जल्दबाजी न करें । किसी बड़े रचनाकार की छत्रछाया न ढूंढें । चीज़ को अपने अंदर पकने दें । कई बार तीन तीन वर्ष तक एक कहानी को पकने में लगे । विचारधारा ओढ़ी हुई न हो । मैं कभी किसी गुट का हिस्सा नहीं बना । इसलिए कोई दुख भी नहीं है । पाठक और दर्शक से कोई उपेक्षा नहीं मिली । बहुत प्यार मिला । मिल रहा है । 
-कोई पुरस्कार ?
-बाल भगवान को जयशंकर प्रसाद पुरस्कार । उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी सन् 1989 पुरस्कार । और भी बहुत सारे । 
यह इंटरव्यू संपन्न । और मैं जैसे एक सपने से जागा । अभी अभी तो मेरे सामने बातें कर रहे थे और डायरी पर मैं नोट्स ले रहा था और अभी कहां चले गये स्वदेश दीपक ? जब से गये हैं कुछ खबर नहीं ।