पालघर से मीडिया हाउस तक 

पत्रकार कमलेश भारतीय की कलम से ज्वलंत मुद्दों पर समीक्षा

पालघर से मीडिया हाउस तक 
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महाराष्ट्र के पालघर में दो साधुओं और उनके ड्राइवर की माॅव लिंचिंग की दुखदायी घटना पालघर से मीडिया हाउस तक पहुंच गयी है । रिपब्लिक टी वी के मुख्य संपादक अर्नब गोस्वामी इसे पालघर से कांग्रेस की कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष तक ले गये जिससे उनके विरूद्ध हिसार ही नहीं अन्य शहरों में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने केस दर्ज करवाए । अब मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा जहां अर्नब गोस्वामी को तीन सप्ताह का संरक्षण मिल गया । आज मीडिया आक्रामक होता जा रहा है और दूसरे पक्ष का आरोप है कि उन्हें धमकाया गया । दोनों ही तरफ से ये बातें निंदनीय हैं । हम मीडिया के लोग किसी का पक्ष इस हद तक जाकर नहीं ले सकते । हमें तो दोनों पक्षों को सुनना है । महाभारत के संजय की भूमिका निभानी है । संजय महाभारत की आंखों देखी सुनाने के लिए वरदान पाए हुए थे । वे स्वयं हथियार उठा कर रणभूमि में नहीं जा सकते थे । जो देखते थे वही सुनाना था । न कुछ अपनी ओर से लगाना था न बुझाना था । अब दुखांत यह है कि मीडिया हाउस इस भूमिका से बाहर निकल रहे हैं । अपने मत को इस तरह रखने लगे हैं मानो वही एक पक्ष हों । यही खतरनाक रेखा है । यही खतरनाक स्थिति है । लक्ष्मण रेखा पार करते जा रहे हैं मीडिया हाउस । पालघर तो एक उदाहरण मात्र है । महाराष्ट्र में सरकार के जोड़ तोड़ में या सबसे ताज़ा मध्यप्रदेश के विधायकों की खरीद फरोख्त में मीडिया हाउस कैसी भूमिका में थे ? इस खरीद फरोख्त या लोकतंत्र के सरेआम अपहरण पर कोई बहस या विचार क्यों नहीं ? किसी को चाणक्य सिद्ध करने पर तुले रहते हैं । विधायकों की खरीद की नीति तो चाणक्य ने कभी नहीं बताई । फिर यह कहां से आई और कैसे चाणक्य ? मुंशी प्रेमचंद का कहा बहुत याद आ रहा है : साहित्यकार का काम निरा मनोरंजन करना नहीं है । बल्कि सोये हुए समाज को जगाना है । साहित्यकार कलम का सिपाही है । साहित्यकार राजनीति के पीछे नहीं चलता । राजनीति को भी रास्ता दिखाते वाली मशाल हैं साहित्यकार ।  एक प्रसंग रामधारी सिंह दिनकर और पंडित जवाहर लाल नेहरु का भी बहुत चर्चित है । लाल किले की सीढ़ियां चढ़ते समय पंडित जी लड़खड़ाये तो साथ चल रहे कवि रामधारी सिंह दिनकर ने संभाल लिया । पंडित जी ने शुक्रिया कहा तब जवाब में दिनकर बोले -पंडित जी । जहां राजनीति लड़खड़ाती है , साहित्य वहीं संभाल लेता है । थाम लेता है ।  यही पत्रकारिता का काम है । राजनीति लड़खड़ाती जा रही है । मीडिया हाउस इसे संभालने का काम करें न कि खुद ही मैदान में किसी का भी पक्ष लेकर उतर आएं ...