समाचार विश्लेषण/देवदूत से यमदूत बनने तक

समाचार विश्लेषण/देवदूत से यमदूत बनने तक
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
क्या कोरोना बहुत भयानक है ? नहीं , शायद कोरोना से भी भयानक हमारी नीयत है जो इस संकट काल में एक दूसरे की सहायता न करके लूटने में लगी है । यदि ऐसी नीयत न होती तो गुरुग्राम से लुधियाना तक एक सवारी ले जाने के लिए एक डाॅक्टर एम्बुलेंस के एक लाख बीस हज़ार रुपये ले लेने की हिम्मत करता ? बेटी अपनी कोरोना संक्रमित मां को लुधियाना के किसी अस्पताल में ले जाना चाहती थी की डाॅक्टर ने उसकी मजबूरी का फायदा उठाते हुए इतनी बड़ी रकम वसूल की । हालांकि बेटी ने रकम तो अदा कर दी लेकिन यह सूचना बाद में ट्वीटर पर दे दी । बस इसी से कार्यवाही होते हुए डाँक्टर को काबू किया । डाॅक्टर ने बचने के लिए वह सारी राशि वापस तो कर दी लेकिन पुलिस ने उसकी एम्बुलेंस जब्त कर ली । यह बात भी सामने आई कि जब से कोरोना ने सिर उठाया तब से यह डाॅक्टर इतनी मोटी कमाई कर रहा था । जिस डाॅक्टर ने देवदूत बनने की शपथ ली थी , वही यमदूत कैसे बन गया? सोचने की बात है । पिछले साल भी एम्बुलेंस संचालक इसी तरह एक से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए मोटी रकम वसूलते सामने आए थे । एम्बुलेंस को सामान्य सवारी ढोने में उपयोग किया जाने लगा था । अभी मज़ेदार बात कि यूपी के महाबली को भी किसी महिला डाॅक्टर ने अपने अस्पताल की एम्बुलेंस दे रखी थी । एम्बुलेंस का दुरूपयोग होने से बहुत से आपातकालीन रोगी अपनी मंजिल तक पहुंच नहीं पायेंगे क्योंकि चैकिंग बढ़ती जायेगी और हूटर भी कोई नहीं सुनेगा । सब रोकेंगे और तलाशी लेंगे । वैसे भी अस्पतालों के खर्च बेतहाशा बढ़ाये जा रहे हैं और सामान्य चीज़ों के दाम भी आसमान छूने लगे हैं यानी एक को क्या रोना यहां तो सारा तालाब भी गंदा है ।
कुछ दिन पहले हिसार में एक स्टिंग ऑपरेशन सामने आया था जिसमें एक मेडिकल स्टोर के संचालक और उसके भतीजे को कोरोना से बचाने के लिए लगाये जाने वाले टीके को चालीस हज़ार रूपये में बेचते पकड़े गये थे । इस तरह इस आपदा के समय को कमाई के अवसर में बदलने के अनेक उदाहरण मिल जायेंगे।  कोई इन्हें यमदूत कहेगा तो कोई इन्हें गिद्ध कह रहा है । ये धरती के यमदूत हैं और मानवता से दूर । जब एक मनुष्य को दूसरे की जरूरत है , तब इन यमदूतों को कमाने की सूझ रही है।  जब मदद के लिए हाथ बढ़ाने की जरूरत है तब ये जेब पर डाका डाल रहे हैं । आखिर यह किस युग में आ गये हम ? 
एक तरफ समाजसेवी संस्थाएं हैं और सोनू सूद जैसे नायक । दूसरी तरफ गिद्ध और यमदूत? धरती पर बोझ जैसे लोग । इंसानियत नाम की कोई चीज़ नहीं बची इनके दिल में । 
खैर , जब तक हमारे समाजसेवा का जज़्बा रखने वाले लोग हैं तब तक ये यमदूत और गिद्ध हमारा क्या बिगाड़ लेंगे? 
इसी बीच जींद में कल किसानों ने एक देसी पत्रकार को दौड़ा दौड़ा कर पीटा जिसका वीडियो वायरल हुआ । यों पत्रकारिता के लिए यह अच्छा ती नहीः लेकिन जिस तरह की पत्रकारिता ये कर रहे थे उसके परिणाम शायद यही होने वाले थे ।
कुंवर बेचैन की पंक्तियां याद आ रही हैं :
किसी के पांव का कांटा निकाल कर देखो 
तुम्हारे दिल की चुंभन भी जरूर कम होगी