लोकतंत्र की किलेबंदी....

लोकतंत्र की किलेबंदी....
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
राजस्थान राॅयल्ज कांग्रेस का मैच आईपीएल मैच जितना रोमांच लिए हुए है , उतनी असली आईपीएल की भी नहीं । ऐसे मैच लोकतंत्र की नींव के लिए शुभ नहीं हैं । आईपीएल की तरह पूरा एक डेढ़ महीने तक यह मैच चलने वाला है । नित नये एपीसोड आते जा रहे हैं । टीमें हैं -मुख्यमंत्री , पूर्व उपमुख्यमंत्री , राज्यपाल । तीन तीन टीमें आपस में आल्टरनेटिव डेज पर भिड़ती हैं । शुरूआती मैच मुख्यमंत्री बनाम उपमुख्यमंत्री की टीम के मुकाबले । हालांकि भाजपा बाहर बैठ कर उपमुख्यमंत्री को बकअप करती रही । साफ साफ कहा कि हम तो दर्शक मात्र हैं । रेफरी राज्यपाल बने रहे । लाइव प्रोग्राम देखते रहे राज्यपाल भवन में बैठे । फिर मुख्यमंत्री बनाम उपमुख्यमंत्री मैच में कोई रोमांच न रहा । उपमुख्यमंत्री को पार्टी से बेदखल करके बाहर निकाल दिया गया । वे अपने खिलाड़ी लेकर मानेसर चले गये । इसलिए मैच मुख्यमंत्री बनाम राज्यपाल के बीच शुरू कर दिया गया । ऐसे में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को रेफरी की भूमिका दे दी गयी । कोर्ट ने कहा कि असहमति का मतलब विद्रोह नहीं माना जाए । इस तरह हो सकता है कि उपमुख्यमंत्री फिर से मैच में लौट आएं क्योंकि वे बार बार कह रहे हैं कि मैं भाजपा में नहीं जा रहा । भाजपा में जा नहीं रहे और कांग्रेस में रहना नहीं चाहते । फिर कहां जाना चाहते हो ? 
न तू जमीं के लिए 
है न आसमान के लिए 
तेरा वजूद है अब 
सिर्फ दास्तान के लिए ,,,
इधर विधानसभा सत्र चौदह अगस्त को बुलाये जाने से मुख्यमंत्री ने अपने विधायकों की किलेबंदी जैसलमेर के किले में कर दी है । किले बहुत सही हैं । लड़ाई और किले दोनों का कुछ मज़ेदार मेल भी है । लड़ाई होगी तो किला भी होगा । जैसलमेर का किला काम आ रहा है । यहां चौदह अगस्त से पहले तक लोकतंत्र कैद में रहेगा । 
कैद में है बुलबुल 
सय्याद मुस्कुराये
कुछ कहा भी न जाये 
रहा भी न जाये ,,,,
कैसे रहेंगे ? बिना कहे कुछ? यह कैसा लोकतंत्र जो जैसलमेर या मानेसर के रिसोर्ट्स में कैद है ? कब तक लोकतंत्र के रक्षक ही इस तरह कैद रखे जायेंगे ? यह हालत खुद विधायकों ने की है अपनी । यदि वे अपनी आत्मा की आवाज़ सुनें और बिकने से इनकार कर दें तो कौन कैद में रख सकता है ? वैसे तारीख बहुत अच्छी है चौदह अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस से पहले विधायकों को आज़ादी मिल जायेगी ।