समाचार विश्लेषण/सबसे लम्बा आंदोलन, सबसे बड़ी हार 

समाचार विश्लेषण/सबसे लम्बा आंदोलन, सबसे बड़ी हार 
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
आखिर 378 दिनों तक चले किसान आंदोलन की समाप्ति हो गयी । किसान जश्न मना रहे हैं तो सरकार सब कुछ हार चुकी है, बेशक गोदी मीडिया इसे प्रधानमंत्री का 'मास्टर स्ट्रोक' साबित करने की नाकाम कोशिश में लगा है और गृहमंत्री की 'रणनीति' के गुणगान भी करने में जुट गया है । इस सबके बावजूद किसान आंदोलन ने भाजपा की मोदी सरकार की न केवल लोकप्रियता कम कर दी बल्कि आने वाले विधानसभा चुनावों में इसका असर साफ साफ देखने को मिलेगा । क्या इस लम्बे आंदोलन के दौरान जो सात सौ से ऊपर कुर्बानियां दी गयीं , किसान उन्हें इतनी आसानी से भूल जायेंगे ? बिल्कुल नहीं । जश्न के बीच भी किसानों की आंखें उन लोगों को याद कर नम हैं और एक आंख में खुशी तो दूसरी आंख में आंसू दिख रहे हैं । 
इस आंदोलन ने प्रधानमंत्री के अहंकार को तोड़ा है । जैसे कभी अंग्रेजी राज के लिए कहा जाता था कि इसका सूरज कभी और कहीं नहीं ढलता वैसे ही मोदी भक्त सोचते थे कि मोदी है तो सब कुछ मुमकिन है । पर अब सबके सामने परिणाम आ गया है कि सब कुछ मुमकिन नहीं होता । कुछ संघर्ष , कुछ एकजुटता और कुछ नेतृत्व भी अपना करिश्मा दिखाता है और दिखाया।  क्या क्या इल्जाम नहीं लगाये किसानों पर -कभी आतंकवादी तो कभी नक्सलवाद तो कभी कुछ तो कभी कुछ और क्या क्या नहीं कहा ? फिर केस चलाये , लाठीचार्ज किये, कीलें ठुकवाईं, आंसू गैस छोड़ी और अन्नदाता का जितना अपमान किया जा सकता था किया गया । इन्हें शराबी, निकम्मे और बेरोजगार तक कहा गया । वही जिसे संसद की कैंटीन में 'अन्नदाता' लिखकर सम्मान दिया था , उसी अन्नदाता को संघर्ष के लिए मजबूर किया गया । जब संघर्ष की काली छाया विधानसभा चुनावों पर पड़ने लगी तब किसानों को मनाने के लिए उसी तरह कृषि कानून वापस ले लिये, जिस तरह चुपचाप बिना किसी विचार या बहस के लागू किये गये थे और चुने हुए जनप्रतिनिधियों को बाहर निकाल दिया गया था । अब उसी 'अन्नदाता' ने बताया कि उसकी उपेक्षा करना कितना भारी और नुकसानदेह हो सकता है । आंदोलनकारियों को हटाने और दबाने के लिए हर साम , दाम , दंड और भेद की नीति अपनाई गयी लेकिन कोई नीति कारगर न रही । हर कदम पर सरकार को हार का सामना करना पड़ा और हार कर वार्ता के द्वार बंद कर बैठ गयी । क्या लोकतंत्र में बिना वार्ता के किसी समस्या का हल निकला है ? अब कभी पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह को इस सबका श्रेय देकर पंजाब में चुनाव जीतने के ख्वाब देखे जा रहे हैं तो कभी उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य को बचाने की कोशिश की जा रही है । ये कोशिशें क्या रंग जायेंगी यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन इतने लम्बे चले आंदोलन ने यह बात दिया कि किसान पगड़ी संभालने का तरीका जान गया है नहीं तो अंग्रेजो के जमाने से 'पगड़ी संभाल ओए जट्टा' जैसे आंदोलन चलते रहे लेकिन पहली बार इतनी बड़ी सफलता मिली और सरकार ने कानून वापस लेने में ही भलाई समझी । अब केस वापस लेने व मुआवजा देने में कोई देर नहीं लगती चाहिए और किसानों को अपने घर लौट कर खेती संभालनी चाहिए । तभी यह देशहित में होगा ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी।