समाचार विश्लेषण/चुनाव आयोग को फिर किसी शेषण का इंतज़ार?

समाचार विश्लेषण/चुनाव आयोग को फिर किसी शेषण का इंतज़ार?
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
क्या चुनाव आयोग को फिर किसी टी एन शेषण का इंतजार है ? क्या) विपक्षी दलों का चुनाव आयोग से भरोसा उठता जा रहा है ? क्या चुनाव आयोग भी सीबीआई की तरह केंद्र सरकार के तोते की भूमिका में आता जा रहा है ? ये सवाल उठ खड़े हुए हैं जब उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी और दिल्ली में सत्ताधारी आप पार्टी ने चुनाव आयोग पर प्रश्नचिन्ह लगाने शुरू कर दिये । समाजवादी पार्टी ने आयोग से कुछ अधिकारियों को हटाये जाने की मांग की है और इनकी निष्पक्षता पर उंगली उठाई है । बाकायदा पत्र लिख कर ऐसे अधिकारियों को हटाने की मांग की है क्योंकि इनसे निष्पक्षता की उम्मीद नहीं है । इसी प्रकार आप पार्टी ने भी भाजपा के चहेते अधिकारियों को आयोग से हटाये जाने की मांग की है । आप के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने भाजपा सरकार पर सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किये जाने का आरोप लगाते हुए भाजपा के चहेते अधिकारियों को हटाये जाने की मांग की है । मीडिया से बातचीत करते संजय सिंह ने आशंका जाहिर की कि ऐसे अधिकारियों के होते यह पूरी आशंका है कि सरकार विधानसभा चुनाव में भी इन अधिकारियों का गलत इस्तेमाल करेगी । ये अधिकारी पांच साल से भाजपा के एजेंट के तौर पर काम करते आ रहे हैं । इन अधिकारियों को फौरन चुनाव आयोग की जिम्मेदारी से मुक्त किया जाये । वैसे संजय सिंह ने चुनाव आयोग द्वारा डिजीटल चुनाव प्रचार के फैसले की सराहना की । 
जो भी हो चुनाव आयोग पर विपक्ष की आशंकायें सामने आने लगी हैं । इसलिए टी एन शेषण भी याद आने लगे हैं जिन्होंने यह अहसास करवा दिया थे कि चुनाव आयोग भी देश में कितनी बड़ी भूमिका निभा सकता है लेकिन उनके बाद यानी उनके उत्तराधिकारी साख संभाल नहीं पाये हैं , ऐसा विपक्ष के आरोपों से लगता है । किसी भी संस्था पर विश्वास होना बहुत जरूरी है । पर चुनाव आयोग पर इस तरह भरोसा उठते जाना बहुत दुखद है , लोकतंत्र के लिए । आप ध्यान दीजिए कि किस तरह पश्चिमी बंगाल के चुनाव सात चरणों में करवाने के आदेश दिये गये थे जबकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और अन्य पार्टियों ने इस पर सवाल उठाये थे लेकिन चुनाव आयोग टस से णस नही हुआ तब भी आयोग पर केंद्र की एजेंसी बनने के आरोप लगे थे । गोवा में सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को सरकार बनाने के न्यौता दिये बिना भाजपा को सरकार बनाने दी गयी । हालांकि यह चुनाव आयोग का काम नहीं पर राज्यपाल ने भी संविधान का पालन नहीं किया । यह कैसा करिश्मा ? ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनसे लोकतांत्रिक परंपराओं के उल्लंघन का पर्दाफाश होता है । जहां तक चुनाव के समय खर्च की बात है उसकी सीमा बढ़ा दी गयी है । यह अच्छी पहल है । फिर भी चुनाव आयोग की साख को बनाये रखने की जिम्मेदारी आयोग की है और देश आपकी ओर आशा भरी निगाहों से देख रहा है । देश के , देशवासियों के भरोसे को बनाये रखिए । नहीं तो गोदो की इंतज़ार की तरह किसी टी एन शेषण का इंतज़ार करेगी ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।