समाचार विश्लेषण/तिरंगे तिरंगे के लहराने में अंतर 

समाचार विश्लेषण/तिरंगे तिरंगे के लहराने में अंतर 
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
एक समय जब संदीप सिंह हाॅकी खिलाड़ी थे , देश के लिए खेलते थे तब जब जब हमारी हाॅकी टीम जीत प्राप्त करती तब तब तिरंगा फहराया जाता और राष्ट्र गीत की धुन बजाई जाती और देशवासियों का सीना चौड़ा हो जाता था और सिर गर्व से ऊंचा ! तब खुद संदीप सिंह कितना गर्व महसूस करते होंगे और वे हमारे स्टार थे । 
अब तिरंगा फहराने गये एक मंत्री के तौर पर तो इनका विरोध करने की पहले से ही घोषणा की गयी थी और वह विरोध किया गया । एक महिला को घसीट कर पुलिस ले गयी । इस दृश्य और पहले दृश्य में कितना अंतर महसूस किया होगा ? खुद संदीप सिह भी सोच रहे होंगे कि जिनकी नजरों में कभी हीरो थे , आज ऐसा क्या हो गया कि विलेन जैसा सलूक किया जा रहा है ? क्यों? ऐसी नौबत क्यों आई ? सोचने की बात है । 
तिरंगा फहराने , लहराने पर जो गर्व होता था , वह कहां गया ? तिरंगा भी सोच रहा होगा कि मुझे लहराने वाले हाथ कैसे बदल गये ? 
हरियाणा जानता है कि महिला कोच के आरोपों के चलते संदीप सिंह का मंत्रीपद ही नहीं इनका मान सम्मान भी दांव पर लगा है । खेलमंत्री के तौर पर उम्मीदें बढ़ गयी थीं , खासतौर पर खिलाड़ियों की । इसके बावजूद खिलाड़ियों को निराशा ही हाथ लगी ।  कभी स्टेडियम के अंदर जाने की फीस लगाने जैसा अजीब फैसला ही कर दिया जिसे विरोध के बाद वापिस लेना पड़ गया । इसी प्रकार जो खिलाड़ियों का भव्य सम्मान समारोह हुआ करता था, वह भी टलता रहा । कुछ नीतियां भी बदलती गयीं जिससे पदक लाओ , पद पाओ वाला नारा भी न रहा । क्या एक खिलाड़ी के नाते संदीप सिंह को कोई स्टैंड नहीं लेना चाहिए था ?
चलो यह बातें तो शायद संदीप सिंह के सीधे बस में नहीं थीं । इसलिए ज्यादा दोषी नहीं माना जा सकता । लेकिन जो आरोप महिला कोच ने लगाये उसके लिए तो सीधे सीधे संदीप सिंह ही निशाने पर हैं । अब वे महिला कोच के चरित्र की जांच की बात कर रहे हैं । दुख यह है कि हमेशा महिला के चरित्र पर ही पहली उंगली उठाई जाती है । क्या यह न्यायोचित है ? महिला कोच अब काफी थक गयी है जांच के थकाने /छकाने वाले तौर तरीकों से और उसे ज्यादा सहयोग भी नहीं मिल रहा ! 
फिर भी बहुत सोचने विचारने की आवश्यकता है ।
हमें तो ये पंक्तियां रह रह कर याद आ रही हैं एक फिल्मी गाने की : 
रहते थे कभी जिनके दिल में हम चांद सितारों की तरह 
हम आज उन्हीं के कूचे पे बैठे हैं 
सितमगरों की तरह ...
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।