समाचार विश्लेषण/ गुलाम नबी और बुद्धदेव में फर्क?

समाचार विश्लेषण/ गुलाम नबी और बुद्धदेव में फर्क?
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
पश्चिमी बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य व जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद में क्या फर्क है ? गुलाम नबी आजाद और बुद्धदेव भट्टाचार्य दोनों को पद्मश्री देने की घोषणा हुई जबकि दोनों का दूर दूर तक भाजपा से कोई लेना देना नहीं है । जहां गुलाम नबी आजाद को कांग्रेस ने विभिन्न पदों पर नवाजा जिनमें जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री का पद भी था , वहीं बुद्धदेव भट्टाचार्य माकपा की ओर से पश्चिमी बंगाल के मुख्यमंत्री बनाये गये थे । किसी तरह की विचारधारा मेल नहीं खाती कांग्रेस और माकपा  भाजपा से । इसके बावजूद इन वरिष्ठ नेताओं को पद्मश्री के लिए चुना गया । हालांकि यह भी कहा जाता है कि ये पुरस्कार राजनीतिक सोच से ऊपर हैं ।
जहां बुद्धदेव भट्टाचार्य ने पद्मश्री लेने से इंकार कर दिया और यह भी कहा कि केंद्र सरकार की ओर से कोई भी अधिकारी उनके घर न आए इस पद्मश्री को लेकर वहीं कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद ने इसे सम्मानपूर्वक ग्रहण करने में देर नहीं लगाई । 
अब बताइए कितना फर्क है बुद्धदेव भट्टाचार्य व गुलाम नबी आजाद में ? जहां बुद्धदेव ने साफ साफ कह दिया कि उनकी विचारधारा नहीं मिलती , वहीं गुलाम नबी खामोश रह गये । रहें भी क्यों न ? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा से गुलाम की सेवानिवृति पर आंसू बहाते कहा थे कि हम आपकी सेवाओं को भूल नहीं पायेंगे और उन्होंने पद्मश्री से नवाज कर वादा पूरा किया । दूसरी ओर जी23 समूह कांग्रेस के अंदर बना कर गुलाम नबी आजाद ने भी अपनी सेवायें दीं जिससे कांग्रेस को कमजोर किया जा सके । इस तरह पद्मश्री लेते समय कांग्रेस या उसकी विचारधारा भूल गये । अरे एक वृद्धा कलाकार ने भी पद्मश्री यह कह कर लौटा दी कि अब इस उम्र में यह मेरे किस काम की ? अरे गुलाम नबी जी आप एक कलाकार की तरह भी इंकार न कर सके ? आखिर कांग्रेस की सेवाओं का यह सिला दिया ? यदि ऐसे पद या सम्मान ही लेना था तो फिर कम से कम भारत रत्न ही मांगते न ? यह पद्मश्री तो लोग लौटा रहे हैं । बुद्धदेव भट्टाचार्य ने तो अधिकारियों के भी घर में घुसने पर रोक लगा दी और आप पहुंचे पद्मश्री लेने । यह फर्क है । आप समझ सकते हो कि कितना फर्क है आपमें और बुद्धदेव में ।
अभी कांग्रेस हाईकमान क्या सोच रही है और कितने मौके इन गुलाम महोदय को देगी ? यह दलबदल तो नहीं लेकिन दलबदल से कम भी नहीं । इसी प्रकार उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी के एक और मित्र आर एन सिंह ऐन   मौके पर कांग्रेस छोड़कर भाजपा मे शामिल हो गये । उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने जिन्हें टिकट घोषित कर दिये हैं वे भी टिकट की परवाह न कर भाजपा में शामिल होते जा रहे हैं । यह हालत है कांग्रेस की उत्तर प्रदेश में । इसीलिए मायावती इसे वोट कटवा पार्टी कह रही है तो यह सच ही होगा । बेशक हालत मायावती की भी ऐसी ही है । ऐसा लगता है कि मुकाबला भाजपा व सपा मे होने जा रहा है । फिर भी देखिए क्या क्या गुल खिलते हैं चुनाव में ...?