समाचार विश्लेषण/क्या निर्वाचन आयोग गैर जिम्मेदार संस्था हो गयी?

समाचार विश्लेषण/क्या निर्वाचन आयोग गैर जिम्मेदार संस्था हो गयी?
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
क्या देश का निर्वाचन आयोग कोई गैर जिम्मेदार संस्था हो चुकी है ? विश्वास न हो तो मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणी हाजिर है-जब नेता रैलियां कर रहे थे, क्या तब अफसर दूसरे ग्रह पर थे ? जरूरत पड़ी तो दो मई को मतगणना भी रोक देंगे । यह टिप्पणी तब आई है जब तमिलनाडु के परिवहन मंत्री विजयाभास्कर ने याचिका दायर कर कहा था कि उनकी सीट पर 77 प्रत्याशी हैं।  सभी प्रत्याशियों के एजेंटों को कोरोना की गाइडलाइंज के चलते मतगणना हाॅल में स्थान मिलना मुश्किल है । इस पर कोर्ट ने टिप्पणी की कि जब चुनाव आयोग ने कहा है कि सब जरूरी इंतजाम किये जा रहे हैं । सबसे तल्ख टिप्पणी तो यह कि चुनाव आयोग के अफसरों पर हत्या का केस दर्ज होना चाहिए । आयोग ने नेताओं को रैलियां-जनसभायें करने की अनुमति दी , जिससे कोरोना का संक्रमण बढ़ा।  बैच ने यह भी कहा कि जरूरत पड़ी तो दो मई को मतगणना रुकवाने से भी पीछे नहीं हटेंगे । यह भी सूचना साथ ही दी गयी है कि पश्चिमी बंगाल में चुनाव के बाद से कोरोना का संक्रमण 93 गुणा तो असम में 123 गुणा बढ़ चुका है । इसकी जिम्मेवारी किस पर ? 
निर्वाचन आयोग को वैसे भी टी एन शेषण से पहले कोई नहीं जानता था । इस संस्था को सम्मान का दर्जा शेषण ने ही दिलवाया जब अपनी शक्तियों का उपयोग नेताओं पर किया तब उन्हें अहसास हुआ कि ऐसी कोई संस्था भी है जो उनकी नाक में धकेल डाल सकती है । इसके बाद से निर्वाचन आयोग का कोई वैसा अधिकारी नहीं आया । अब तो हालत यह हो गयी है कि निर्वाचन आयोग भी सीबीआई की तरह पिंजरे का दूसरा तोता लगने लगा है।  यह सरकार की ही हां में हां मिलाता नज़र आ रहा है । पश्चिमी बंगाल में कभी आठ चरण मे चुनाव नहीं हुए लेकिन इस समय के निर्वाचन आयोग ने सबकी बात अनसुनी कर आठ चरण में चुनाव करवाने का फैसला कायम रखा।  इतने में कोरोना को मौका मिल गया । ऊपर से नेताओं की रैलियों पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी । सबके सब भीड़ देख कर गद्गद् होते रहे । अपनी लोकप्रियता का पैमाना मानते रहे । रैलियां तो रैलियां ऊपर से रोड शोज।  पूरा इम्तिहान ले लिया आम जनता के सब्र का । जब राहुल गांधी ने रैलियां रद्द करने की बात की तब पांच पांच सौ की सभाओं पर आ गये लेकिन रैलियां या सभायें खत्म नहीं कीं बल्कि यह दोष लगाया कि राहुल या कांग्रेस की रैली में आता ही कौन है । अब कोर्ट को क्या कहोगे? हमारी रैलियों में जनता आती थी । हम तो रोकते थे पर हमारे नेताओं की लोकप्रियता के आगे क्या करते ? 
कोरोना को बहुत ही लापरवाही से लिया निर्वाचन आयोग ने । कोई कार्यवाही नहीं की रैलियों या जनसभाओं या रोड शोज पर । सब चलने दिया । फिर सचमुच कैसी संस्था है यह ? निर्जीव ? निष्प्राण ? सचमुच इसे एक और टी आर शेषण की जरूरत है । सिर्फ तोते की तरह पिंजरे में बंद संस्था का क्या फायदा ? जिस देश का प्रधानमंत्री मतदान के दिन हाथ में पार्टी का चुनाव चिन्ह लेकर मीडिया से रूबरू हो और कोई कार्यवाही न की जाये , उस आयोग से कोरोना की गाइडलाइंज की पालना की उम्मीद कैसे की जा सकती है ? जिस देश का प्रधानमंत्री ही चुनाव के दौरान दूसरे भाग में रैली कर चुनाव प्रभावित करने में जुटा हो और निर्वाचन आयोग अपने आंख , नाक और कान बंद किये बैठा हो , उस आयोग से क्या निष्पक्षता की कोई उम्मीद की जा सकती है ? 
मद्रास हाईकोर्ट ने जो टिप्पणी की है, क्या वह संदेश निर्वाचन आयोग तक पहुंच गया है ? 
देर न हो जाये 
कहीं देर न हो जाये 
आ जाओ 
निर्वाचन आयोग 
कृष्ण मुरारी की तरह 
द्रौपदी यानी चुनाव को 
बचा लो