समाचार विश्लेषण/बिहार में ढीला पड़ने लगा गठबंधन

समाचार विश्लेषण/बिहार में ढीला पड़ने लगा गठबंधन
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
क्या बिहार में जदयू व भाजपा का गठबंधन ढीला पड़ने लगा है ? क्या नीतिश कुमार से भाजपा अब पीछा छुड़ाने के मूड में है ? क्या नीतिश फिर से राजद व कांग्रेस की शरण में जायेंगे ? कितने सारे सवाल हैं जो बिहार में हो रहे नये घटनाक्रम से उठने लगे हैं । नीतिश कुमार ने पहले भी राजद व कांग्रेस के साथ गठबंधन में सरकार बनाई थी लेकिन बीच राह में जब वे एक पेंटिंग कॉम्पिटिशन में मुख्यातिथि के तौर पर गये तब अचानक ब्लैक बोर्ड पर कमल का फूल बना कर अपने मन की बात की ओर संकेत ओर दिया था और कुछ दिन बाद सरकार भाजपा के साथ बना ली थी । भाजपा बिहार में नीतिश के सहारे अपनी पैठ बनाने में सफल रही और अब नीतिश से छुटकारा पाने का अवसर ढूंढ रही है । । फिर भी नीतिश का जादू बिहार में बरकरार है और लालू प्रसाद यादव व नीतिश कुमार जेपी आंदोलन की उपज हैं और एक दूसरा के मित्र हैं । इसीलिए अस्पताल में जब लालू यादव की तबीयत जायदा बिगड़ने लगी तब नीतिश अपनी मित्रता के नाते उन्हें अस्पताल देखने गये । क्या यह भी कोई नया संकेत माना जा सकता है ?

इस नये घटनाक्रम को देखते नीतिश ही नहीं तेजस्वी ने भी अपने अपने विधायकों की बैठकें बुला ली हैं । तेजस्वी ने राहुल गांधी को भी फोन कर कांग्रेस का समर्थन जुटा लिया है । पहले भी ये तीनों दल एकसाथ सरकार बना चुके हैं । भाजपा जहां नीतिश का फायदा उठाने के बाद एक किनारे करने की सोच रही है , वहीं नीतिश भी कम खिलाड़ी नहीं हैं । वे लगातार भाजपा के खेल को समझते बूझते दूरी बना रहे हैं और अंदर ही अंदर गोटियाँ फिट करने में लगे हैं । जैसे ही तालमेल सही बैठ जायेगा भाजपा से गठबंधन टूट सकता है । 

भाजपा लगातार क्षेत्रीय दलों को कमज़ोर कर रही है । चाहे हरियाणा को ही ले लीजिए । यहां भी जजपा के साथ गठबंधन में सरकार चलाते भी जजपा को कमजोर करने में कोई कभी नहीं छोड़ रही । खबरें आती रहती हैं कि जजपा में बगावत होने वाली है , कौन ऐसी खबरें चलाते हैं ? आप सहज ही समझ सकते हैं । अब कुलदीप बिश्नोई के भाजपा में शामिल हो जाने से कैसे रिश्ते रहते हैं जजपा के साथ ? यह भी सोचने की बात है । इसी प्रकार पश्चिमी बंगाल की ममता बनर्जी को भी साधने की कोशिश जारी है । ममता के पहले वाले तेवर नहीं रहे । यशवंत सिन्हा को प्रत्याशी बनाने के बाद कहा कि यदि पहले द्रौपदी को प्रत्याशी बनाये जाने का पता रहता तो हम भी समर्थन कर देते । ये बदले बदले सुर कैसे ? मायावती तो भाजपा के समर्थन में अब पीछे नहीं हटती जिससे बसपा राष्ट्रीय राजनीति में प्रभावहीन व अप्रासंगिक होती जा रही है । ऐसे कितने ही प्रसंग उल्लेखनीय हैं । देखिए होता है क्या बिहार में ....
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।