गुरूद्वारा बाबा सोमा शाह में धूमधाम से मनाया गया बंदी छोड़ दिवस
एकजुटता और मानवता के मूल्यों को मजबूत करने का संदेश दिया।
रोहतक, गिरीश सैनी। सिख समुदाय के लिए आध्यात्मिक आज़ादी और करुणा का प्रतीक बंदी छोड़ दिवस स्थानीय डीएलएफ कॉलोनी स्थित गुरूद्वारा बाबा सोमा शाह में समूह संगत द्वारा धूमधाम से मनाया गया। श्रद्धालुओं ने दरबार साहिब में मत्था टेक कर सुख शांति की अरदास की। संगत ने दीये व मोमबत्ती जलाकर और आतिशबाजी कर एक दूसरे को बधाई दी।
हेड ग्रंथी भाई गुरजीत सिंह ने बंदी छोड़ दिवस के पावन अवसर पर संगत को हार्दिक शुभकामनाएं दी और गुरु साहिब के दिखाए मार्ग पर चलने और समाज में प्रेम व भाईचारा फैलाने का संदेश दिया। उन्होंने मन के विकारों को दूर कर सच्ची मुक्ति की अरदास करने का आह्वान किया।
हजूरी रागी बीबा मनजोत कौर ने अपनी मधुर वाणी में “वडी आरज़ा हर गोबिंद की”, “सतगुरू बंदी छोड़ है” और “हर जियो हर जियो निमानिया तू मान” सहित अन्य शब्द गाकर गुरू की महिमा का बखान किया और संगत को निहाल किया।
अरदास उपरांत श्रद्धालुओं के लिए गुरु का लंगर अटूट बरताया गया। इस दौरान हजूरी रागी बीबा मनजोत कौर, कुलदीप सिंह सोनी, सरदार हरिंद्र सिंह, वीरेंद्र गोसाई, हरजीत कौर, अरविंदर कौर, इशिता भाटिया, सौरभ हंस, मान्या, कपिल बजाज, गगनदीप सिंह, महेश चिटकारा, मनीष बजाज, प्रीति, सान्या सहित अन्य सेवादार व काफी तादाद में श्रद्धालु मौजूद रहे।
उल्लेखनीय है कि इस दिन, छठे सिख गुरु, श्री गुरु हरगोबिंद साहिब, मुगल सम्राट जहांगीर द्वारा ग्वालियर जेल में कैद से 52 राजाओं के साथ रिहा होने के बाद अमृतसर लौटे थे। इतिहास के अनुसार सिख धर्म के बढ़ते प्रभाव से चिंतित मुगल शासक जहांगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब को बंदी बनाकर ग्वालियर किले में कैद कर दिया था। उस समय वहां पहले से ही देशभर के 52 हिंदू राजा भी कैद थे। गुरु हरगोबिंद साहिब ने कैद के दौरान उन्हें हिम्मत बंधाई और उनके साथ हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई। जब गुरु साहिब ग्वालियर किले से आज़ाद हुए, तो उसी दिन को ‘बंदी छोड़ दिवस’ के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई। यह दिन पूरे भारत में एकता, इंसानियत और धर्मनिरपेक्षता की मिसाल के रूप में देखा जाता है।
Girish Saini 


