अश्विनी जेतली फिर हाज़िर हैं इस हफ़्ते की ग़ज़ल के साथ

अश्विनी जेतली फिर हाज़िर हैं इस हफ़्ते की ग़ज़ल के साथ
अश्विनी जेतली।

तुम्हारी याद की नगरी, जब भी मेरा जाना होता है 
मैं हंस दूँ, तो भी सब कहते हैं - वोह दीवाना रोता है

धड़क जाता है दिल और होंठ भी फिर थरथरा जाएं
ज़िक्र तेरा ज़ुबाँ पे जब कभी भी आना होता है

मेरे अशआर भी तो झूम कर इठलाने लगते हैं 
तेरी यादों को मेरी रग में जब इठलाना होता है 

फाकाकशी के आलम में भी जो खुश ही दिखाई दे 
बता दूँ, या तो वो शायर या फिर दीवाना होता है 

ज़ाहिर है फिज़ा में तब ज़हरें ही घुलेंगी, जब 
नेताओं ने सियासत में धर्म को लाना होता है 

ग़ज़ल में ज़िक्र ज़ुल्फ़ों का वो फिर करे भी किस तरह 
देश की दशा को जिस शायर ने, पहचाना होता है

अब इस मुआशरे का आईना दिखलाने लगा शायर 
शायर को भी तो दुनिया को, मुँह दिखलाना होता है 

वो एक फूल ही गुलशन में मुद्द्तों बाद खिलता है 
जिसे महक अपनी से, कायनात को महकाना होता है