अश्विनी जेतली की काव्य रचना `जाने दो ना'

अश्विनी जेतली की काव्य रचना `जाने दो ना'
अश्विनी जेतली।

मत रोको
मुझे जाने दो ना
अनंत की ओर

अपनी बाहों में 
भरना है मुझे 
सारे के सारे ब्रह्माण्ड को

फ़ज़ा में बिखरी 
खुशबू को समेटना है
अपनी मुट्ठी में

नफ़रत की धुंध
ईर्ष्या के धुएं को
मिटाना है 
मोहब्बत की रौशनी से

निष्क्रिय करना है
मानवता की दुश्मन बनीं
सांप्रदायिक हवाओं को

जाने दो मुझे 
हाथ में लेकर 
संवेदनाओं की कटार 

तुम्हें होगा शक
कि नहीं गिरेगी मोहब्बत से
नफ़रतों की दीवार

पर विश्वास है मुझे 
जंग से नहीं अमन से
गुलज़ार होगा संसार

जाने दो मुझे
मत रोको