कलाकार कोई चाबी वाला खिलौना नहीं , कलाकार का कड़वा सच 

कलाकार कोई चाबी वाला खिलौना नहीं , कलाकार का कड़वा सच 

-कमलेश भारतीय 
कल शाम रंग आंगन नाट्योत्सव में एकसाथ तीन नाटक मंचित हुए । असम से अभिनय थियेटर की ओर से दयाल कृष्ण नाथ के निर्देशन में कड़वा सच नाटक प्रस्तुत किया गया जिसमें कलाकार के जीवन की व्यथा कथा रखी गयी । कलाकार कोई चाबी वाला खिलौना नहीं कि जब चाहा और जैसे चाहा वह आपका मनोरंजन करे । यह कला या कलाकार का उद्देश्य नहीं है । राजनीति वाले भी कलाकार का इस्तेमाल करना चाहते हैं और कलाकार का द्वंद्व सामने आता है , दुविधा दिखाई देती है कि कला की तरफ जाये या सिर्फ राजनीति का चेहरा मोहरा बन जाये ? कलाकार हँसाता है तो सब हंसते है लेकिन उसके दुख में कोई रोना नहीं चाहता । पुरस्कार /सम्मान भी कोसों दूर हैं । आखिरकार वह अपने घर की जरूरतें भी पूरी नहीं कर पाता । वह इस निष्ठुर संसार से विदा ले लेता है तो उसकी पत्नी कहती है कि मैं उसकी कला को जीवित रखूंगी और कला का मुफ्त प्रदर्शन नहीं करूंगी । नेता आकर कलाकार की प्रतिमा का अनावरण कर वाहवाही लूटते हैं । यही कलाकार की नियति है । यही उसकी व्यथा कथा है । 
निर्देशक दयाल कृष्ण नाथ कलाकार की व्यथा कथा को सामने लाने में सफल रहे । इनकी बेटी दक्षिणा ने कलाकार की पत्नी का रोल निभाया जबकि रोसेश्वर सैकिया ने कलाकार की भूभिका में जान लगा दी ।
दूसरा एकल नाटक मां मुझे टैगोर बना दे रहा जिसे जम्मू से आये लक्की गुप्ता ने खुले आंगन में प्रस्तुत किया । इस नाटक में अनेक भूमिकाएं निभाई लक्की अकेले पौने घंटे तक दर्शकों को बांधे रखने में सफल रहा । खुशी दूसरों से बांटने , किसी गिरे हुए इसान को उठा कर गले लगाने जैसी प्यारी प्यारी सीख भी खामोशी से दे दीं । और अगर कोई हार मिल जाये तो एकला चलो रे का मंत्र भी दिया । इस एकल प्रस्तुति के लक्की अब तक ग्यारह सौ से ऊपर शो कर चुके हैं । 
तीसरा नाटक था-गज, फुट, इंच ! इसमे एक ऐसा परिवार जो सिर्फ अपने फायदे के बारे में ही सोचता है और जीवन की हर खुशी को भी फायदे नुकसान में तोलकल देखता है । के पी सक्सेना लिखित नाटक में हंसी व्यंग्य का तड़का तो होना ही था । ऐसे परिवार के बेटे को शादी के लिये लड़की देखने जाने का समय भी मुश्किल से निकालना पड़ता है । उसमें भी घाटे का सौदा लगता है । आखिरकार लड़की ही कहती है -मुनाफा , पैसा और कुछ नहीं । मै कुछ नहीं ? इसीलिये आते हैं मेरे पास ? मेरे ही दिये उपहार के पैन को भी बेचकर मुनाफा कमा लिया ! इस तरह यह चोट काम कर जाती है और उसे प्रेम का अहसोस होता है । निर्देशन सुरेश चौहान ने किया । संगीत निशांन ने दिया । आंचल, इशिका और मुहम्मद आलाफ विभिन्न भूमिकाओं में रहे । 
मनीष जोशी को बधाई । नये से नये थियेटर को हिसार तक लाने के लिये !
##नट सम्राट सम्मान : हरियाणा ग्रंथ अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष कमलेश भारतीय को कल शाम बाल भवन में रंग आंगन नाट्योत्सव में दयाल कृष्ण नाथ और मनीष जोशी ने नट सम्राट क्रिटिक अवाॅर्ड प्रदान किया । यह अवाॅर्ड बारह मार्च को दिल्ली में नट सम्राट के नाटक उत्सव में दिया जाना था । किसी कारण वश भारतीय जा नहीं पाये तो यह सम्मान दयाल कृष्ण नाथ लेकर आये और नाट्योत्सव में प्रदान किया ।