अप्पो दीप आपो भवः /कमलेश भारतीय 

अप्पो दीप आपो भवः /कमलेश भारतीय 
कमलेश भारतीय।

दीपावली । रोशनी का त्योहार । ऐसी रोशनी जो सारे विश्व में फैली । विश्व के हर कोने में दीपावली मनाई जाती है बड़े उत्साहपूर्वक । जहां जहां भारतवासी पहुंचे वहां वहां श्रीराम की कथा रामायण भी पहुंची । रामायण की कथा ने सबको मर्यादाएं सिखाईं । सीता जैसी नारी और राम जैसा पुरूष बनना एक सपना । एक आदर्श । लक्ष्मण जैसा भाई । हनुमान जैसा सेवक कहां ? रावण जैसा खलनायक भी कोई नहीं तो विभीषण जैसा घर का भेदी भी नहीं कोई । कितने सारे चरित्र । आज भी हृदय द्रवित हुए बिना नहीं रहता । यही सारे चरित्र दुनिया में आज भी हैं । हम कैसा बनना चाहते हैं ? कहते हैं कि राम और रावण दोनों तुलसी दास ने दिखाए और ये दोनों रूप उनके अंदर विराजमान थे । ऐसे ही हर इंसान के अंदर राम भी है और रावण भी । किस पल कौन बाहर आता है , यह मनुष्य भी नहीं जान पाता । 

तीर्थंकर महावीर ने इसीलिए कहा कि अप्पो दीप आपो भवः । अपने दीपक स्वयं बनो । अपने अंदर के प्रकाश को बुझने न दो । अपनी आत्मा की आवाज़ सुनो । अपने जीवन की राह खुद बनाओ । किसी के सुझाव किसी काम नहीं आएंगे । आत्मा को जगाएं रखो  और इसकी निरंतर सुनो । 
एक महात्मा ने अपने दो शिष्यों की परीक्षा ली और एक एक कबूतर देकर कहा कि जाओ । इन्हें वहां मार कर आओ , जहां कोई दूसरा देखता न हो । एक शिष्य तो यूं गया और यूं आया कि लो गुरु जी । मरोड़ दी गर्दन ।दूसरा कुछ देर बाद लौटा लेकिन जीवित कबूतर के साथ । पूछा -क्यों भाई , क्या हुआ ?

जवाब मिला कि गुरु जी , कोई और देखे या न देखे । मेरी अपनी दो आंखें तो इसे देख रही थीं । मैं इसकी गर्दन नहीं मरोड़ सकता । ये दो आंखें नहीं थीं । ये उस शिष्य की आत्मा थी । जब तक हमारी आत्मा हमें गलत काम करते समय धिक्कारती है तब तक हम राम बने रहते हैं और जब हम अपनी आत्मा की आवाज़ नहीं सुनते तब हम रावण बन जाते हैं । इसलिए अप्पो दीप आपो भवः । दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ।