समाचार विश्लेषण/अन्नदाता सड़कों पर और मीडिया ग्लैमर के पीछे ....?

समाचार विश्लेषण/अन्नदाता सड़कों पर और मीडिया ग्लैमर के पीछे ....?
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 

देश का अन्नदाता सड़कों पर । मीडिया को नहीं खबर । वह तो ग्लैमर के पीछे हाथ धोकर पड़ा हुआ है । लगभग तीन माह से । जब से सुशांत सिंह राजपूत का केस हुआ । मीडिया बाकी सब कुछ भूल गया । याद रहा तो बस ग्लैमर । यहां तक कि सुशांत सिंह राजपूत को भी भूल गया । उसकी भी कोई खोज खबर नहीं । अब तो बस एनसीबी से आगे चलना है । सीबीआई को मात देनी है । यदि हमारा मीडिया इतना पाॅवरफुल है तो फिर जम्मू कश्मीर के पुलवामा का केस आज तक हल क्यों नहीं किया? 

पहले या अब भी मीडिया चैनल्ज पर दोपहर को मनोरंजन कार्यक्रम आधे आधे घंटे या एक घंटे के आते थे -सास , बहु और साजिश जैसे । अब तो उनको अलग से दिखाने की जरूरत ही नहीं रह गयी । चौबीसों घंटे तो ग्लैमर ही ग्लैमर परोसा जा रहा है । एनसीबी अंदर और मीडिया चैनल बाहर । क्या अंडरस्टेंडिंग है । 

इधर संजय राउत ने कहा कि यह सब मुम्बई की फिल्मी दुनिया को बदनाम कर तबाह करने की साजिश है । इतना बदनाम कर दो कि कोई यहां काम करने आए ही नहीं । इसीलिए मौके पर चौंका मारते हुए यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फिल्म सिटी बनाने की घोषणा कर दी । सबसे पहला स्टुडियो किसका होगा ? कंगना रानौत का और उद्घाटन करेंगे योगी आदित्यनाथ जी । 

वैसे हमारे पंजाब में भी जब ज्ञानी जैल सिंह मुख्यमंत्री थे तब रोपड़ को रूपनगर का नाम देकर फिल्म सिटी बनाई गयी थी लेकिन सतलुज किनारे कुछ गानों की शूटिंग से ज्यादा कुछ नहीं हुआ । ज्ञानी जी राष्ट्रपति तक पहुंच गये और रूपनगर फिर से रोपड़ बनाना पड़ा । है न कमाल । हमारे हरियाणा के रोहतक में परफाॅर्मिंग आर्ट्स नाम से सुपवा यूनिवर्सिटी बनाई गयी है । एक बार इसी मार्च में इसे देखने का अवसर भी मिला । कुछ स्टूडियोज और कुछ सेट्स हैं । शूटिंग के लिए । छोटी छोटी क्लासिज पर अभी इसका परिणाम आना बाकी है । 

नोएडा में पहले से ही कितने फिल्म संस्थान और टीवी स्टूडियोज चल रहे हैं । फिर भी सबकी दौड़ मुम्बई तक । क्यों ? आखिर एक सौ साल का फिल्मी इतिहास मुम्बई से ही तो मुख्य तौर पर जुड़ा है । कोलकाता में बांग्ला फिल्म उद्योग, बिहार में भोजपुरी और पंजाब में कहते हैं पालीवुड लेकिन बिना मुम्बई गये कल्याण नहीं होता । फिर अलग से फिल्म सिटी से क्या होगा ? 

किसान के दर्द को मीडिया कब नोटिस करेगा ? लाठीचार्ज की खबर कब तक दबाई जायेगी ? धरने प्रदर्शन में कोई ग्लैमर नहीं न । नयी पीढ़ी जो मीडिया में आना चाहती है वह क्या सीख रही होगी ? सिर्फ रिया चक्रवर्ती या दीपिका पादुकोण और रकुल प्रीत सिंह की गाड़ियों का पीछा करना और शीशे के पास सवाल पूछते रहना जो उन्हें सुनाई भी नहीं देते । यह क्या है ? कैसी रिपोर्टिंग? क्या स्तर ? टीआरपी ने क्या हाल बना दिया आपका ? कुछ लेते क्यों नहीं ? कुछ बड़ा क्यों नहीं सोचते ? कुछ हटकर का मंत्र क्यों भूल गये ? कुछ अलग सोचो यारो । यह दुनिया आभासी दुनिया है । सच्ची दुनिया की ओर लौटो । आ , अब लौट चलें ,,,,