ओलम्पिक का लेखा जोखा, रंग नहीं चोखा
-*कमलेश भारतीय
आज ओलम्पिक का लेखा जोखा आया है कि हमने पिछले ओलम्पिक से एक पदक कम प्राप्त किया है । यह भी सच्चाई है कि यदि विनेश फौगाट डिसक्वालीफाई न होती तो हमारे पदकों की संख्या फिर सात ही होती । इस बार नीरज चोपड़ा भी स्वर्ण नहीं जीत सके तो रजत पर ही संतोष करना पड़ा । एक रजत पदक ही हमारा बड़ा पदक है, बाकी बचे पांच कांस्य पदक ही हैं यानी हम हर इवेंट में तीसरे नम्बर पर ही रह गये । यह भी गनीमत है । ये भी ओलम्पिक दल नहीं जीत पाता तो क्या कर लेते? ओलम्पिक दल परपर करोड़ों करोड़ों रुपये खर्च बताया जा रहा है और भरपाई 51 करोड़ की यानी जिन खिलाड़ियों पर 51 करोड़ रुपये खर्च किये गये, उन्होंने पदक जितवाये, बाकी तो ओलम्पिक की सैर कर आयेंगे। वैसे सैर भी खिलाड़ी नहीं बल्कि सहयोगी स्टाफ करता है, जो जुगाड़ लगाकर ओलम्पिक दल में शामिल हो जाता है, कुछ दिन की मस्ती के लिए ! यदि ऐसा रवैया न होता तो विनेश का वजन बढ़ता ! जैसे अंतिमा पंघाल का मामला सामने आया कि किस तरह उनकी बहन व अन्य सहयोगियों के व्यवहार के कारण उन्हें पेरिस छोड़ने के आदेश दिये गये । यह सब बहुत ही शर्मनाक है । खिलाड़ी हमारे ब्रांड एम्बेसडर की तरह होते हैं और उन्हें या उनके सहयोगियों को अच्छा आचरण कर दिल जितना चाहिए न कि देश के नाम पर धब्बा लगाना चाहिए । निशा के समर्पण की याद बनी रहेगी जो 8-2 से जीतती कंधे व उंगली की चोट से कराहती रही लेकिन मैदान नहीं छोड़ा । काश ! उसकी पुरानी चोट न उभरती तो वह भी देश के लिए पदक जरूर जीतती पर उसके ज़ज़्बे को सलाम ! विनेश के ज़ज़्बे को सलाम, जिसने एक ही दिन में तीन तीन पहलवानों को धूल चटाई लेकिन सौ ग्राम बढ़े वजन से अयोग्य होकर बाहर हो गयी !
हाॅकी टीम से इस बार आस थी कि कांस्य पदक से ऊपर जायेगी लेकिन सेमीफाइनल मैच में जर्मनी से हार गयी और स्पेन से जीतकर कांस्य पदक तो ले ही आई तह टीम ! हाॅकी कप्तान हरमनप्रीत का मानना है कि हाॅकी लौट रही है और हाॅकी के सुनहरे दिन भी लोटेंगे, बस, युवा पीढ़ी हाॅकी से प्यार करे, हाॅकी बदले में दोगुना प्यार लौटायेगी ! यह आशावाद बहुत अच्छी बात है। लगातार दो ओलम्पिक में कांस्य पदक जीता हैस हाॅकी टीम ने। यह भी कम नहीं किसी भी तरह !
हमें अन्य खेलों पर ध्यान केन्द्रित करना होगा और नयी प्रतिभाओं की आने वाले चार वर्षों में खोजना होगा। सब कुछ क्रिकेट ही नहीं है और न ओलम्पिक में क्रिकेट की कोई प्रतियोगिता है । इस ओलम्पिक ने मनु भाकर, सरबजोत, अमन जैसे नये स्टार्स दिये हैं। नीरज चोपड़ा पिछली बार भी स्टार था और इस बार भी स्टार है । स्वर्ण जीतने वाले की पाकिस्तान में मां और नीरज चोपड़ा की मां ने बहुत मार्मिक व दिल को छूने वाला संदेश दिया कि वो भी हमारा ही बेटा है और मैंने उसके लिए भी दुआ की । दोंनों दोस्त हैं और भाई जैसे हैं ! काश ! यह बात देश का बंटवारा करवाने वाले राजनेताओं ने समझी होती !
सच, मांओं ने यही संदेश दिया कि
उनका जो फर्ज़ है वो अहले सियासत जाने
अपना तो पैगाम मोहब्बत है, जहां तक पहुंचे!!
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।
Kamlesh Bhartiya 

